Question:

'कर्ण' खण्डकाव्य के आधार पर कुन्ती का चरित्र-चित्रण कीजिए । 
 

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चरित्र-चित्रण करते समय पात्र के अंतर्द्वंद्व और उसकी परिस्थितियों का उल्लेख अवश्य करें, जैसे कुन्ती की लोक-लाज और पुत्र-प्रेम के बीच की विवशता। यह आपके उत्तर को अधिक संवेदनशील और सटीक बनाता है।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

'कर्ण' खण्डकाव्य में कुन्ती का चरित्र एक विवश, ममतामयी, चिंतित और पश्चाताप की अग्नि में जलती हुई माँ के रूप में उभरकर सामने आता है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
ममतामयी माँ: कुन्ती अपने सभी पुत्रों (पांडवों और कर्ण) से असीम स्नेह करती हैं। उनका हृदय कर्ण के लिए भी ममता से भरा हुआ है, जिसे उन्होंने समाज के भय से त्याग दिया था। वे कर्ण को युद्ध में पांडवों के विरुद्ध लड़ते नहीं देखना चाहतीं और इसी ममता के वशीभूत होकर वे कर्ण से मिलने जाती हैं।
विवश एवं भाग्यहीना: कुन्ती का जीवन विडम्बनाओं और विवशताओं से भरा है। कौमार्यावस्था में मिले पुत्र को लोक-लाज के भय से उन्हें नदी में बहाना पड़ा। यह रहस्य वे जीवन भर अपने हृदय में छिपाए रहीं। यह विवशता उनके चरित्र की सबसे बड़ी त्रासदी है।
पश्चाताप की अग्नि में दग्ध: कुन्ती अपने कृत्य पर जीवन भर पश्चाताप करती हैं। वे इस बात से दुःखी हैं कि वे कर्ण को उसका अधिकार और पहचान नहीं दे सकीं। जब वे कर्ण के पास जाती हैं, तो उनका हृदय अपराध-बोध और पश्चाताप से भरा होता है।
चिंताग्रस्त: कुन्ती महाभारत के आसन्न युद्ध के विनाशकारी परिणाम को लेकर अत्यंत चिंतित हैं। वे जानती हैं कि इस युद्ध में उनके ही पुत्र एक-दूसरे के रक्त के प्यासे होंगे। कर्ण और अर्जुन के बीच होने वाले संघर्ष की कल्पना मात्र से ही वे सिहर उठती हैं।
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