'कर्ण' खण्डकाव्य में श्रीकृष्ण एक सहायक परन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण पात्र हैं। वे कथा को एक निर्णायक मोड़ देते हैं। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
महान कूटनीतिज्ञ: श्रीकृष्ण एक कुशल कूटनीतिज्ञ हैं। वे महाभारत के युद्ध को टालने का हर संभव प्रयास करते हैं। इसी उद्देश्य से वे कर्ण के पास जाते हैं और उसे पांडवों के पक्ष में लाने की चेष्टा करते हैं।
स्पष्टवादी एवं निर्भीक: वे कर्ण के समक्ष बिना किसी लाग-लपेट के उसके जन्म का रहस्य उजागर कर देते हैं। वे स्पष्ट रूप से उसे दुर्योधन के अधर्मी साथ को छोड़ने के लिए कहते हैं।
पांडवों के हितैषी: वे पांडवों के परम हितैषी और संरक्षक हैं। वे चाहते हैं कि कर्ण जैसा महान योद्धा पांडवों की ओर से लड़े, जिससे उनकी शक्ति बढ़े और धर्म की विजय हो।
प्रलोभन-दाता: अपनी बात मनवाने के लिए वे कूटनीति का सहारा लेते हुए कर्ण को राज्य और द्रौपदी तक का प्रलोभन देते हैं। यह उनके राजनीतिक कौशल को दर्शाता है।
गुणों के प्रशंसक: यद्यपि कर्ण शत्रु पक्ष में है, फिर भी श्रीकृष्ण उसकी वीरता, दानवीरता और मित्र-धर्म के प्रति निष्ठा की प्रशंसा करते हैं।
संक्षेप में, 'कर्ण' खण्डकाव्य में श्रीकृष्ण एक लोक-कल्याणकारी, कुशल राजनीतिज्ञ और धर्म-स्थापना के लिए प्रयत्नशील पात्र के रूप में चित्रित हुए हैं।