'कर्ण' खण्डकाव्य में द्रौपदी एक वीरांगना और स्वाभिमानी नारी के रूप में चित्रित हैं। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
अत्यंत स्वाभिमानी: द्रौपदी एक क्षत्राणी हैं और उनमें स्वाभिमान की भावना कूट-कूट कर भरी है। वे कौरवों द्वारा भरी सभा में किए गए अपने अपमान को भूल नहीं पातीं।
अपमान की पीड़ा से व्यथित: चीर-हरण का अपमान उनके हृदय में एक ज्वाला की भाँति धधकता रहता है। यह पीड़ा उन्हें शांति से नहीं बैठने देती।
युद्ध की प्रेरिका: जब पांडव शांति और क्षमा की बात करते हैं, तो द्रौपदी उन्हें उनके क्षत्रिय धर्म की याद दिलाती हैं। वे अपने अपमान का बदला लेने और युद्ध के लिए उन्हें प्रेरित करती हैं।
वीर नारी: वे कायरता को पसंद नहीं करतीं। वे अपने पतियों को वीरों की भांति युद्ध करके न्याय प्राप्त करने के लिए उत्साहित करती हैं।
तर्कशील: वे अपने तर्कों से पांडवों को यह समझाती हैं कि शांति-प्रस्ताव भेजना उनकी कायरता समझी जाएगी और उन्हें अपने सम्मान के लिए युद्ध करना ही होगा।
इस प्रकार, द्रौपदी एक ऐसी नारी हैं जो अन्याय को सहन नहीं करतीं और अपने सम्मान की रक्षा के लिए संघर्ष करने में विश्वास रखती हैं।