'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य का तृतीय सर्ग 'कौशल्या-सुमित्रा-मिलन' एक अत्यंत मार्मिक और भावपूर्ण सर्ग है। इसमें भरत के ननिहाल से अयोध्या लौटने पर उनकी अपनी माताओं से भेंट का हृदयस्पर्शी वर्णन है।
Step 1: Bharat's Return:
जब भरत अपने ननिहाल से अयोध्या लौटते हैं, तो वे नगर की उदासी और अपने पिता दशरथ के निधन का समाचार सुनकर टूट जाते हैं। उन्हें जब यह पता चलता है कि उनकी माता कैकेयी ने ही राम को वनवास और उनके लिए राज्य माँगा है, तो वे ग्लानि और क्रोध से भर उठते हैं।
Step 2: Meeting with Kaushalya:
भरत सबसे पहले श्री राम की माता कौशल्या के पास जाते हैं। कौशल्या पुत्र-वियोग में व्याकुल हैं। भरत को देखते ही वे उन्हें कटु वचन कहती हैं, "अब तुम सुखी होकर राज्य करो।" भरत उनके चरणों में गिरकर अपनी निरपराधता सिद्ध करते हैं और विलाप करते हैं। वे कहते हैं कि इस कुकृत्य में यदि उनकी तनिक भी सहमति हो तो उन्हें घोर पाप लगे। भरत की सरलता और राम-भक्ति देखकर कौशल्या का क्रोध शांत हो जाता है और वे उन्हें गले लगा लेती हैं।
Step 3: Meeting with Sumitra:
इसके पश्चात् भरत माता सुमित्रा से मिलते हैं। सुमित्रा एक वीर क्षत्राणी और ज्ञानवान नारी हैं। वे भरत को धैर्य बँधाती हैं और उन्हें राजधर्म का पालन करने की प्रेरणा देती हैं। वे लक्ष्मण के वन जाने को उनका सौभाग्य बताती हैं। सुमित्रा के ज्ञानपूर्ण वचनों से भरत को सांत्वना मिलती है। यह सर्ग माताओं के वात्सल्य और भरत के निर्दोष चरित्र को उजागर करता है।