Question:

'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के 'राम-भरत-मिलन' सर्ग का कथानक संक्षेप में लिखिए । 
 

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'राम-भरत-मिलन' का कथानक लिखते समय, भरत के त्याग और श्रीराम की पितृ-भक्ति, इन दो केंद्रीय भावों पर ध्यान केंद्रित करें। चरण-पादुकाओं वाले प्रसंग का उल्लेख करना अनिवार्य है क्योंकि यह भरत के महान त्याग का प्रतीक है।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य का 'राम-भरत-मिलन' सर्ग भ्रातृ-प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाने वाला एक अत्यंत मार्मिक प्रसंग है। इसका कथानक संक्षेप में इस प्रकार है:
जब भरत ननिहाल से लौटकर अयोध्या आते हैं, तो उन्हें माता कैकेयी के षड्यंत्र, पिता दशरथ की मृत्यु और भाई राम के वन-गमन का समाचार मिलता है। वे अत्यंत दुखी और क्रोधित होते हैं।
वे अपनी माता कैकेयी को धिक्कारते हैं और अयोध्या का राज्य स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं।
भरत निश्चय करते हैं कि वे वन जाकर श्रीराम को मनाकर वापस लाएंगे और उन्हें ही राजसिंहासन सौंपेंगे।
वे तीनों माताओं, गुरु वशिष्ठ, मंत्रियों और अयोध्या की प्रजा के साथ चित्रकूट के लिए प्रस्थान करते हैं, जहाँ श्रीराम निवास कर रहे थे।
चित्रकूट में गंगा के तट पर राम और भरत का भाव-विभोर करने वाला मिलन होता है। दोनों भाई एक-दूसरे के गले लगकर रोते हैं।
भरत श्रीराम से अयोध्या लौटकर राज करने का आग्रह करते हैं और स्वयं को ही सब अनर्थों का कारण बताते हैं।
श्रीराम भरत को निर्दोष बताते हुए उन्हें धैर्य बँधाते हैं और पिता के वचन की रक्षा के लिए वन में ही रहने का अपना दृढ़ निश्चय दोहराते हैं।
अंत में, जब श्रीराम किसी भी तरह लौटने को तैयार नहीं होते, तो भरत उनकी चरण-पादुकाओं (खड़ाऊँ) को लेकर अयोध्या लौटते हैं और उन्हें सिंहासन पर रखकर एक सेवक की भाँति चौदह वर्षों तक राज्य का संचालन करते हैं।
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