'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के नायक भरत हैं। कवि ने भरत को एक महान कर्मयोगी, आदर्श भाई और त्यागी पुरुष के रूप में चित्रित किया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
महान त्यागी और निर्लोभी: भरत के चरित्र का सबसे उज्ज्वल पक्ष उनका त्याग है। जब उन्हें अपनी माता कैकेयी द्वारा माँगा गया अयोध्या का राज्य मिलता है, तो वे उसे काँटों के समान त्याग देते हैं। उनके लिए राज-सुख से बढ़कर भाई का प्रेम और पिता के वचन का मान है।
आदर्श भ्राता: भरत का अपने बड़े भाई श्री राम के प्रति प्रेम और श्रद्धा अनुकरणीय है। वे स्वयं को राम का सेवक मानते हैं। वे राम को वन से लौटाने के लिए चित्रकूट तक जाते हैं और उनके न लौटने पर उनकी खड़ाऊँ को सिंहासन पर रखकर एक सेवक की भाँति चौदह वर्षों तक राज्य का संचालन करते हैं।
आत्मग्लानि से युक्त: जब भरत को अपनी माता के कुकृत्य का पता चलता है, तो वे आत्मग्लानि से भर उठते हैं। वे स्वयं को इस सारे अनर्थ का कारण मानते हैं। उनका यह पश्चाताप उनके निर्मल और संवेदनशील हृदय का परिचायक है।
कर्मयोगी: भरत केवल भावुक ही नहीं, बल्कि एक सच्चे कर्मयोगी भी हैं। वे राम की अनुपस्थिति में एक तपस्वी की भाँति जीवन जीते हुए राज-काज की सारी जिम्मेदारियों को कुशलतापूर्वक निभाते हैं। वे कर्त्तव्य-पालन को ही अपनी पूजा समझते हैं।