Question:

'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग का सारांश लिखिए । 
 

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किसी एक सर्ग का सारांश पूछा गया है, इसलिए आप किसी भी सर्ग का वर्णन कर सकते हैं। 'राम-भरत-मिलन' सर्ग खण्डकाव्य के केंद्रीय भाव (भरत का भ्रातृ-प्रेम) को व्यक्त करता है, इसलिए इसका वर्णन करना श्रेयस्कर है।
Updated On: Nov 11, 2025
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Solution and Explanation

'राम-भरत-मिलन' सर्ग का सारांश
'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य का 'राम-भरत-मिलन' सर्ग भ्रातृ-प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाने वाला एक अत्यंत मार्मिक प्रसंग है। इसका सारांश इस प्रकार है:
जब भरत ननिहाल से लौटकर अयोध्या आते हैं, तो उन्हें माता कैकेयी के षड्यंत्र, पिता दशरथ की मृत्यु और भाई राम के वन-गमन का समाचार मिलता है। वे अत्यंत दुखी और क्रोधित होते हैं।
वे अपनी माता कैकेयी को धिक्कारते हैं और अयोध्या का राज्य स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं।
भरत निश्चय करते हैं कि वे वन जाकर श्रीराम को मनाकर वापस लाएंगे और उन्हें ही राजसिंहासन सौंपेंगे।
वे तीनों माताओं, गुरु वशिष्ठ और अयोध्या की प्रजा के साथ चित्रकूट के लिए प्रस्थान करते हैं, जहाँ श्रीराम निवास कर रहे थे।
चित्रकूट में राम और भरत का भाव-विभोर करने वाला मिलन होता है। भरत श्रीराम से अयोध्या लौटकर राज करने का आग्रह करते हैं।
श्रीराम भरत को धैर्य बँधाते हैं और पिता के वचन की रक्षा के लिए वन में ही रहने का अपना दृढ़ निश्चय दोहराते हैं।
अंत में, भरत श्रीराम की चरण-पादुकाओं (खड़ाऊँ) को लेकर अयोध्या लौटते हैं और उन्हें सिंहासन पर रखकर एक सेवक की भाँति चौदह वर्षों तक राज्य का संचालन करते हैं।
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