'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग 'राजभवन' में श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारियों और मंथरा-कैकेयी संवाद का वर्णन है। इसका कथानक संक्षेप में इस प्रकार है:
अयोध्या के राजभवन में श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ बड़े धूमधाम से चल रही हैं। सम्पूर्ण नगर में उत्सव का माहौल है।
कैकेयी की कुबड़ी दासी मंथरा इस समाचार से ईर्ष्या से जल उठती है। वह कैकेयी के पास जाती है और उसके कान भरना शुरू कर देती है।
प्रारंभ में, कैकेयी श्रीराम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर प्रसन्न होती है और मंथरा को पुरस्कार देना चाहती है।
किन्तु मंथरा अपनी कुटिल बातों से कैकेयी को यह विश्वास दिला देती है कि राम के राजा बनने पर कौशल्या का प्रभाव बढ़ जाएगा और भरत को दास बनकर रहना पड़ेगा।
मंथरा के लगातार बहकाने से कैकेयी का सरल मन बदल जाता है। वह मंथरा के षड्यंत्र में फंस जाती है।
मंथरा कैकेयी को राजा दशरथ द्वारा दिए गए दो वरदानों की याद दिलाती है और उन्हें माँगने के लिए उकसाती है।
कैकेयी कोपभवन में चली जाती है और दशरथ से अपने दो वरदानों - भरत के लिए राज्य और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास - माँगने का निश्चय कर लेती है।