'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य में कैकेयी का चरित्र एक ऐसी माँ का है जो परिस्थितियों के कारण गलती कर बैठती है, किन्तु बाद में उसके लिए गहरा पश्चाताप करती है। उनके चरित्र में एक स्पष्ट परिवर्तन दिखाई देता है। उनकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
प्रारंभ में सरल और स्नेहमयी: प्रारम्भ में कैकेयी सरल स्वभाव की थीं और श्रीराम को अपने पुत्र भरत से भी अधिक स्नेह करती थीं। वे ही श्रीराम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर सबसे अधिक प्रसन्न हुई थीं।
कुचक्र का शिकार: वे अपनी दासी मंथरा के कुचक्र और बहकावे में आ जाती हैं। मंथरा उनके मन में ईर्ष्या और असुरक्षा का बीज बो देती है, जिससे उनकी मति भ्रष्ट हो जाती है।
अदूरदर्शी और हठी: मंथरा के बहकावे में आकर वे बिना सोचे-समझे राजा दशरथ से अपने दो वरदान माँग लेती हैं। वे अपने हठ पर अड़ी रहती हैं और इसके भयानक परिणामों का अनुमान नहीं लगा पातीं।
पश्चाताप की अग्नि में दग्ध: जब उनके हठ के कारण पति दशरथ की मृत्यु हो जाती है और उनका अपना पुत्र भरत उन्हें धिक्कारता है, तब उन्हें अपनी भूल का अहसास होता है। वे पश्चाताप की आग में जलने लगती हैं। चित्रकूट में श्रीराम के समक्ष वे अपने अपराध को स्वीकार करती हैं और क्षमा माँगती हैं।
चरित्र का उन्नयन: पश्चाताप के आँसुओं से उनका कलंक धुल जाता है और श्रीराम उन्हें क्षमा कर देते हैं। अंत में उनका चरित्र एक भूली-भटकी किन्तु पश्चाताप करने वाली माँ के रूप में उभरता है, जिससे पाठक की सहानुभूति उन्हें प्राप्त होती है।