श्री लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक' द्वारा रचित 'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य में कैकेयी एक प्रमुख पात्र हैं। कवि ने उनके चरित्र को परम्परागत खलनायिका के रूप से भिन्न, एक मानवीय और पश्चाताप से युक्त नारी के रूप में चित्रित किया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. सरल हृदया एवं स्नेहमयी माँ: प्रारम्भ में कैकेयी एक सरल हृदय वाली रानी और राम से असीम स्नेह करने वाली माँ हैं। वे राम को भरत से भी अधिक प्रेम करती हैं।
2. कुचक्र की शिकार: वे अपनी दासी मंथरा के कुचक्र और बहकावे में आ जाती हैं। मंथरा उनके मन में भविष्य की आशंकाओं और ईर्ष्या का विष घोल देती है, जिसके प्रभाव में आकर वे दशरथ से वरदान माँग लेती हैं।
3. पश्चाताप की अग्नि में जलती हुई नारी: अपने कृत्य के भयंकर परिणामों, विशेषकर राजा दशरथ की मृत्यु से, उन्हें अपनी भूल का गहरा एहसास होता है। वे पश्चाताप की आग में जलने लगती हैं। चित्रकूट की सभा में उनका पश्चाताप चरम पर पहुँच जाता है, जहाँ वे स्वयं को दोषी मानती हैं।
4. आत्मग्लानि से परिपूर्ण: जब भरत उन्हें दोषी ठहराते हैं, तो वे मौन रहकर सब कुछ सहन करती हैं। उनकी आत्मग्लानि उन्हें भीतर ही भीतर तोड़ देती है। वे राम से क्षमा याचना करती हैं।
इस प्रकार, इस खण्डकाव्य में कैकेयी एक ऐसी पात्र हैं जो परिस्थितियों के कारण भूल करती हैं, परन्तु बाद में सच्चे हृदय से पश्चाताप कर अपने चरित्र को निर्मल बना लेती हैं।