'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के नायक भरत हैं। उन्हें एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई और त्यागी शासक के रूप में चित्रित किया गया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
आदर्श भ्राता: भरत का अपने बड़े भाई श्रीराम के प्रति प्रेम और सम्मान अनुकरणीय है। वे श्रीराम के बिना अयोध्या के राज्य की कल्पना भी नहीं कर सकते। भ्रातृ-प्रेम में वे विश्व-साहित्य में अद्वितीय हैं।
महान त्यागी और निर्लोभी: उनकी माता कैकेयी ने उनके लिए ही राज्य माँगा था, परन्तु भरत राज-सुख को ठोकर मार देते हैं। उनके मन में राज्य का कोई लोभ नहीं है।
आत्मग्लानि से युक्त: वे अपनी माता के कृत्य के लिए स्वयं को दोषी मानते हैं और आत्मग्लानि की आग में जलते रहते हैं। वे कैकेयी को कटु वचन भी कहते हैं।
विनम्र एवं शीलवान: भरत स्वभाव से अत्यंत विनम्र और सदाचारी हैं। वे माता कौशल्या और गुरु वशिष्ठ के समक्ष अपनी निर्दोषिता सिद्ध करते हैं।
आदर्श एवं कर्तव्यनिष्ठ शासक: श्रीराम के वन से न लौटने पर, वे उनकी खड़ाऊँ को सिंहासन पर रखकर एक सेवक की भाँति चौदह वर्षों तक अयोध्या का राज-काज संभालते हैं। यह उनके महान कर्तव्य-पालन का प्रमाण है।
निष्कर्षतः भरत त्याग, भ्रातृ-प्रेम, शील और कर्तव्यनिष्ठा की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं।