Question:

‘कविता-लेखन’ के संबंध में कौन-से दो मत मिलते हैं ? आप स्वयं को किस मत का समर्थक मानते हैं और क्यों ?

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उत्तर में किसी कवि का उदाहरण देने से उत्तर में प्रामाणिकता और गहराई बढ़ती है।
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Solution and Explanation

कविता लेखन को लेकर साहित्य जगत में दो प्रमुख मत देखने को मिलते हैं:
1. स्वतः स्फूर्त प्रेरणा का मत: इस मत के अनुसार कविता एक अभिव्यक्ति की अनायास प्रवृत्ति है, जो किसी गहरे भाव या क्षणिक अनुभूति के समय स्वतः प्रकट होती है।
2. शिल्प और अभ्यास का मत: इस मत में कविता को एक कला माना जाता है जिसे अनुशासन, अभ्यास और तकनीक से निखारा जा सकता है। इसमें भाषा, छंद, प्रतीक और अलंकार का अभ्यास आवश्यक है।
मैं स्वयं दूसरे मत — अभ्यास आधारित कविता लेखन — का समर्थक हूँ, क्योंकि केवल भावनाएँ पर्याप्त नहीं, उनकी सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति भी आवश्यक है। यह अभिव्यक्ति भाषा की गहराई, लय और संरचना से ही संभव है।
उदाहरण के लिए, महादेवी वर्मा की कविताओं में भावुकता के साथ अत्यंत परिष्कृत भाषा और छंदबद्धता का संतुलन देखने को मिलता है — यह साधना और अभ्यास का परिणाम है।
इसलिए कविता को केवल प्रेरणा नहीं, परिश्रम और शिल्प का समन्वय मानना अधिक यथार्थपरक दृष्टिकोण है।
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