Question:

'कर्ण' खंडकाव्य के आधार पर कर्ण द्वारा 'कवच-कुण्डल दान' का वर्णन कीजिए।

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दान के प्रसंग का वर्णन करते समय यह याद रखें कि कर्ण ने दान को धर्म और स्वाभिमान से जोड़ा था, न कि केवल उदारता से।
Updated On: Oct 28, 2025
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Solution and Explanation

'कर्ण' खंडकाव्य कवि श्यामनारायण पांडेय की अत्यंत प्रसिद्ध रचना है। इसमें कवि ने महाभारत के वीर पात्र दानवीर कर्ण के जीवन की घटनाओं को अत्यंत मार्मिकता और गौरव के साथ प्रस्तुत किया है।
कवच-कुण्डल दान का प्रसंग कर्ण के अतुलनीय दान-स्वभाव और त्याग की भावना को उजागर करता है। जब इंद्र, अर्जुन की रक्षा के लिए ब्राह्मण का वेश धारण कर कर्ण के पास आते हैं, तब वे उनसे उनका जन्मजात कवच और कुण्डल माँगते हैं।
कर्ण सब कुछ जानने के बावजूद प्रसन्नतापूर्वक उन्हें दान दे देते हैं। वे यह भी जानते हैं कि यही कवच-कुण्डल उनके जीवन की रक्षा का आधार हैं, परंतु दानवीरता को वे जीवन से भी ऊपर मानते हैं। कर्ण बिना किसी हिचकिचाहट के अपने शरीर से कवच-कुण्डल उतारकर दे देते हैं, जिससे उनका शरीर रक्तरंजित हो जाता है।
कवि ने इस प्रसंग के माध्यम से कर्ण के त्याग, सहनशीलता और दानशीलता की ऐसी अद्वितीय झलक प्रस्तुत की है, जो उन्हें "दानवीर कर्ण" के रूप में अमर कर देती है। संक्षेप में: कवच-कुण्डल दान का प्रसंग यह दर्शाता है कि कर्ण के लिए दानधर्म ही जीवन का सर्वोच्च आदर्श था।
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