'ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य का कथानक घटना-प्रधान न होकर भाव-प्रधान और चरित्र-प्रधान है। इसमें किसी एक कहानी का वर्णन नहीं है, बल्कि नायक जवाहरलाल नेहरू के विराट व्यक्तित्व का काव्यात्मक चित्रण है।
काव्य का आरम्भ स्वतंत्र भारत के नवनिर्माण के प्रश्न से होता है, जिसका नेतृत्व नेहरू जी कर रहे हैं।
कवि कल्पना करता है कि नेहरू रूपी 'लोकनायक' का निर्माण सम्पूर्ण भारत के योगदान से हुआ है। भारत के विभिन्न प्रदेशों, नदियों, पर्वतों और महापुरुषों ने अपने-अपने श्रेष्ठ गुण उन्हें प्रदान किए हैं। राजस्थान ने अपना शौर्य, महाराष्ट्र ने वीरता, दक्षिण ने कला, और गांधीजी ने सत्य-अहिंसा का गुण उन्हें दिया है।
इसमें नेहरू जी के स्वतंत्रता-संग्राम में योगदान, उनके जेल-जीवन और भारत की गौरवशाली संस्कृति की खोज का वर्णन है।
कवि ने उनकी राष्ट्रीय नीतियों (पंचवर्षीय योजनाएँ, औद्योगीकरण) और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों (पंचशील, गुटनिरपेक्षता) का भी उल्लेख किया है, जो उनके दूरदर्शी व्यक्तित्व को दर्शाती हैं।
अंत में, कवि नेहरू जी को एक ऐसे 'ज्योति पुंज' के रूप में स्थापित करता है जो भारत के गौरवशाली अतीत को वर्तमान से जोड़कर उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। वे ही भारत के 'जवाहर' (रत्न) हैं और 'ज्योति' (प्रकाश) भी।