श्री देवी प्रसाद शुक्ल 'राही' द्वारा रचित 'ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य का कथानक किसी एक कहानी पर आधारित नहीं है, बल्कि यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के विराट व्यक्तित्व का काव्यात्मक वर्णन है। कवि ने उन्हें एक 'लोकनायक' और भारत के भाग्य-विधाता के रूप में प्रस्तुत किया है। इसका कथानक संक्षेप में इस प्रकार है:
खण्डकाव्य का आरम्भ उस समय से होता है जब भारत स्वतंत्र हो चुका है और उसके नवनिर्माण का उत्तरदायित्व पं. नेहरू के कंधों पर है।
कवि ने नेहरू जी को एक दिव्य पुरुष के रूप में चित्रित किया है, जिसके निर्माण में सम्पूर्ण भारत का योगदान है। भारत के विभिन्न प्रदेश, नदियाँ, पर्वत और महापुरुष अपने-अपने गुण नेहरू जी को प्रदान करते हैं।
राजस्थान उन्हें अपना शौर्य और त्याग देता है, महाराष्ट्र शिवाजी की वीरता देता है, तो दक्षिण भारत उन्हें अपनी कला और दर्शन प्रदान करता है। गंगा-यमुना उन्हें अपनी पवित्रता और गहराई देती हैं।
इसमें नेहरू जी के जीवन के संघर्ष, उनके स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान, उनके जेल-जीवन और भारत की खोज का वर्णन है।
खण्डकाव्य में नेहरू जी की राष्ट्रीय (पंचवर्षीय योजनाएँ, औद्योगीकरण) और अंतर्राष्ट्रीय (गुटनिरपेक्षता, पंचशील) नीतियों का भी उल्लेख है।
अंततः, कवि नेहरू जी को एक ऐसे 'ज्योति पुंज' के रूप में स्थापित करता है जो भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य को अपने प्रकाश से आलोकित करता है। वे ही 'ज्योति जवाहर' हैं।
इस प्रकार, इसका कथानक घटना-प्रधान न होकर भाव-प्रधान और चरित्र-प्रधान है।