'जय सुभाष' खण्डकाव्य में 'आजाद हिन्द सेना' के गठन की घटना का वर्णन अत्यंत प्रेरणादायी है:
अंग्रेजों की नजरबंदी से निकलकर सुभाष चन्द्र बोस जर्मनी पहुँचते हैं। वहाँ से वे जापान जाते हैं।
उस समय जापान में महान क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने 'इंडियन इंडिपेंडेंस लीग' की स्थापना की थी और मलाया तथा बर्मा में अंग्रेजों की ओर से लड़ रहे भारतीय युद्धबंदियों को मिलाकर एक सेना का गठन किया था, जिसका नाम 'आजाद हिन्द फ़ौज' रखा गया था।
रासबिहारी बोस वृद्ध हो चुके थे। जब सुभाष चन्द्र बोस सिंगापुर पहुँचे, तो रासबिहारी बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज का नेतृत्व उन्हें सौंप दिया।
सुभाष चन्द्र बोस ने इस सेना को पुनर्गठित किया। उन्होंने सैनिकों में एक नया जोश और अनुशासन भरा। उन्होंने 'रानी झाँसी रेजिमेंट' के नाम से एक महिला सैन्य दल का भी गठन किया।
उन्होंने सैनिकों को "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा" और "दिल्ली चलो" जैसे ओजस्वी नारे दिए।
इस प्रकार, सुभाष के कुशल नेतृत्व में आजाद हिन्द फ़ौज भारत को स्वतंत्र कराने के लिए एक शक्तिशाली और अनुशासित सेना बन गई।