'जय सुभाष' खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश
'जय सुभाष' खण्डकाव्य का प्रथम सर्ग नायक सुभाष चन्द्र बोस के जन्म, बचपन और युवावस्था की घटनाओं पर आधारित है। सर्ग का आरम्भ भारत की महिमा के गुणगान से होता है और बताया जाता है कि ऐसे महान देश में सुभाष जैसे वीर ने जन्म लिया।
इस सर्ग में उनके माता-पिता (जानकीनाथ बोस और प्रभावती) का परिचय दिया गया है। बचपन से ही सुभाष की बुद्धि अत्यंत तीव्र थी और उनके मन में देश-प्रेम की भावना प्रबल थी।
कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ते समय एक अंग्रेज प्रोफेसर ओटेन द्वारा भारतीयों का अपमान किए जाने पर युवा सुभाष का खून खौल उठता है। वे इस अन्याय का विरोध करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कॉलेज से निकाल दिया जाता है। यह घटना उनके स्वाभिमानी और निर्भीक चरित्र को उजागर करती है।
इसके पश्चात् वे अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए इंग्लैंड जाकर आई.सी.एस. की कठिन परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं। परन्तु, गुलामी की नौकरी करना उनके स्वाभिमान को स्वीकार्य नहीं था। अतः वे इस उच्च पद को त्यागकर भारत माता की सेवा करने का संकल्प लेते हैं और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ते हैं।