Question:

“इसे ‘सैक्स’, ‘सार्त्र’ भी नहीं बयान कर सकते” — ‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में यह कथन किस संदर्भ में कहा गया? इसका क्या आशय है? इस संदर्भ में अपने विचार स्पष्ट कीजिए। 
 

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गाँव का अनुभव दर्शन नहीं — स्मृति और संवेदना का संगम होता है।
Updated On: Jul 24, 2025
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Solution and Explanation

यह कथन लेखक ने ‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में गाँव की अनुभूति, उसकी मिट्टी की सोंधी गंध, रिश्तों की आत्मीयता और जीवन के गाढ़ेपन को व्यक्त करने के लिए कहा है। इसमें पश्चिमी दार्शनिकों — सैक्स और सार्त्र — के गूढ़ चिंतन की सीमाओं को रेखांकित करते हुए कहा गया है कि गाँव और मिट्टी के अनुभवों को कोई दार्शनिक सिद्धांत नहीं बाँध सकता।
संदर्भ: लेखक बिस्कोहर की मिट्टी में खड़ा होकर एक अद्भुत अनुभव करता है — जो न तर्क से समझा जा सकता है, न भाषा से व्यक्त किया जा सकता है। यह अनुभूति केवल महसूस की जा सकती है।
आशय: (1) पश्चिमी चिंतन भले ही बुद्धि और विश्लेषण में श्रेष्ठ हो, परंतु भारतीय गाँव की माटी भाव, स्मृति और आत्मीयता से जुड़ी होती है।
(2) यह कथन संकेत करता है कि कुछ अनुभव “दार्शनिक नहीं, जीवनीय” होते हैं।
(3) बिस्कोहर की माटी एक प्रतीक है उस आत्मीय रिश्ते का, जो मनुष्य और ज़मीन के बीच होता है।
निष्कर्ष: यह कथन गाँव की मिट्टी से उपजे जीवन के रस, संवेदना और स्मृति को महिमामंडित करता है — और बताता है कि भारत की आत्मा मिट्टी में बसती है, दर्शनशास्त्र में नहीं।
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