Question:

हरगोबिन को अचरज हुआ -- तो आज भी किसी को संदेसिया की ज़रूरत पड़ सकती है~। 
इस ज़माने में जबकि गाँव-गाँव में डाकघर खुल गए हैं, संदेसिया के मार्फत संवाद क्यों भेजेगा कोई~? 
आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज सकता है और वहाँ का कुशल संवाद माँग सकता है~। 
फिर उसकी बुलाहट क्यों हुई~? हरगोबिन बड़ी हवेली की टूटी झरोखी पारकर अंदर गया~। 
सदा की भाँति उसने वातावरण को सूँघकर संवाद का अंदाज़ लगाया~। 
निश्चित ही कोई गुप्त समाचार ले जाना है~। 
चाँद-सूरज को भी नहीं मालूम हो~। 
पेवो-पंछी तक न जाने~। “पाँव लागी, बड़ी बहुरिया~!” बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को पीढ़ी दी और आँख के इशारे से कुछ देर चुपचाप बैठने को कहा~। 
बड़ी हवेली अब नाममात्र को ही बड़ी हवेली है~। 
जहाँ दिनभर नौकर-नौकरानियाँ और जन-मज़दूरों की भीड़ लगी रहती थी, वहाँ आज हवेली की बड़ी बहुरिया अपने हाथ से सूखा में अनाज लेकर फटक रही है~।

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“संवदिया” का प्रयोग प्रतीकात्मक है — वह केवल संवाद का माध्यम नहीं, एक लुप्त होती आत्मीय संस्कृति का प्रतिनिधि है।
Updated On: Jul 21, 2025
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Solution and Explanation

सन्दर्भ:
यह गद्यांश एक ऐसे ग्रामीण परिवेश से जुड़ा हुआ है जहाँ आधुनिकता के प्रभाव से पुरानी सामाजिक व्यवस्थाएँ लुप्तप्राय हो चुकी हैं। लेखक यहाँ तकनीकी प्रगति के बावजूद मानवीय संबंधों की संवेदनशीलता और पुराने जमाने की आत्मीयता को रेखांकित करता है।
प्रसंग:
हरगोबिन को अचरज तब होता है जब उसे सन्देशवाहक (संवदिया) की आवश्यकता प्रतीत होती है — जबकि वह जानता है कि आज के समय में संदेश भेजने के अनेक साधन उपलब्ध हैं। यह विस्मय उसकी भावनात्मक उलझन और सामाजिक परिवर्तन को दर्शाता है।
व्याख्या:
गद्यांश में ‘संवदिया’ की चर्चा केवल संचार के साधन के रूप में नहीं, बल्कि पुराने संबंधों और पारिवारिक आत्मीयता की प्रतीक के रूप में हुई है।
हरगोबिन आश्चर्यचकित है कि जब आज मोबाइल, टेलीविज़न, इंटरनेट जैसे साधन उपलब्ध हैं, तो फिर किसी को मुख्तारनामा ले जाने वाले संवदिये की क्या आवश्यकता?
वह सोचता है कि अब कोई लंका तक बैठकर संवाद भेज सकता है — फिर उसे क्यों बुलाया गया?
इसके बाद का दृश्य बदलते समय और सामंती व्यवस्था के पतन को दिखाता है — बड़ी हवेली की टूटी दहलीज़, वीरान चौबारा, और बड़ी बुढ़िया का अकेलापन — सब मिलकर सामाजिक बदलाव और विघटन को प्रकट करते हैं।
जहाँ कभी चहल-पहल थी, वहीं अब सन्नाटा है। यह स्थिति केवल हवेली की नहीं, पूरे समाज के संक्रमण की प्रतीक है।
निष्कर्ष:
यह गद्यांश परंपरा और आधुनिकता के टकराव, सामंती समाज के पतन, और संवादहीन होते संबंधों की व्यथा को उजागर करता है। संवदिया यहाँ केवल व्यक्ति नहीं, एक संवेदनशील युग का प्रतीक बनकर आता है।
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