निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
भूपति मरन पेप मनु राखी। जननी कुमति जगत् सबु साखी॥
देखि न जाहिं बिकल महतारी। जरौं दुसह जर पुर नर नारी॥
महीं सकल अनरथ कर मूला। सो सुनि समुझि सहितौं सब सूला॥
सुनि बन गवन कीन्ह रघुनाथा। करी मुनि बेष लखन सिय साथा॥
बिनु पानिहिं प्याओदेहि पाएँ। संकर साधि रहें एहि धाएँ॥
बहिरी निहारी निपट सनेहू। कुलिस कठिन उर भयउ न बेंहू॥
अब सुभ आँगिनि देखहुँ आई। जियत जीव जड़ सबद सहाई॥
जिन्हहि निरिखि मग साँपिनि बीन्ही। तिनहि बिपम बिषु तापस तीन्ही॥
तेर रघुनंदन लखन सिय अनाथ लगै जाहि।
तासु तनय तीज दुसह दुख देइ सनेस कहि॥
‘बनारस’ कविता के आधार पर बनारस शहर की धार्मिक पृष्ठभूमि और सामाजिक यथार्थ के एक-एक बिंदु पर प्रकाश डालिए।
विद्यापति और जायसी की नायिकाओं में किस प्रकार की समानता है ? पठित पदों के आधार पर किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
देवसेना के जीवन-संघर्ष को अपने शब्दों में लिखिए।
निम्नलिखित पाठ्य काव्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए :
"मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
हो इसी धर्म पर वज्रपात
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हो भ्रष्ट शिथिल के-से शरतल!
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण!"