Comprehension

निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :
बाज़ार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी "परचेजिंग पावर" के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति – शीतलन शक्ति, व्यंजन की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाजार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारीकरण बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि मूल्य बढ़ाना है। वस्तु की बढ़ती का अर्थ वस्तु में गुणों की घटती है। इस समष्टि में जब तक आदमी आपस में भाई-भाई और बहनें और पड़ोसी फिर से नहीं बन जाते हैं और आपस में खरीद और बेचने (क्रय-विक्रय) की तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों। एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखाई दे। और यह बाजार का, बल्कि इतिहास का, सत्य माना जाता है। ऐसे बाजार की बीच में लेकिन लोगों में आवश्यकताएँ तो असीमित नहीं होतीं; बल्कि शोषण होने लगता है। तब बाजार सशक्त होता है, विकृत विकराल होता है। ऐसे बाजार मानवता की निर्मिति विफल कर देंगे जो उचित बाजार का पोषण करता हो, जो सच्चा लाभ करता हुआ हो; वह शोषणरससिक्त और वह मायावी शास्त्र है, वह अर्थशास्त्र अनैतिक-शास्त्र है।

Question: 1

बाज़ार में पसंद का ह्रास कब दिखाई देता है?

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ऐसे प्रश्नों में उत्तर सीधे गद्यांश की प्रमुख पंक्तियों से निकाला जा सकता है — इसलिए गहराई से पढ़ना आवश्यक होता है।
Updated On: Jul 30, 2025
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Solution and Explanation

गद्यांश के अनुसार, बाज़ार का प्रभाव तब सबसे अधिक होता है जब व्यक्ति स्वयं यह भूल जाता है कि उसे क्या पसंद है और क्या नहीं। वह केवल अपनी प्रतिष्ठा, प्रदर्शन या शक्ति का प्रदर्शन करने में लग जाता है। ऐसे में बाज़ार व्यक्ति की स्वाभाविक पसंद-नापसंद की भावना को छीन लेता है और निर्णय बाजार द्वारा तय किए जाने लगते हैं।
यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अपने विवेक और मूल्यों के स्थान पर बाज़ार की प्राथमिकताओं को अपनाने लगता है। गद्यांश में स्पष्ट रूप से कहा गया है — "बाज़ार को सार्थकता वही दे सकता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है और जो नहीं जानता वह अपनी पसंद-नापसंद की भावना खो बैठता है।"
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Question: 2

बाज़ार में सद्भाव के हास का क्या दुष्परिणाम निकलता है?

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जब प्रश्न "दुष्परिणाम" पूछे, तो गद्यांश में नकारात्मक प्रभावों की ओर विशेष ध्यान दें — वहाँ समाधान छिपा होता है।
Updated On: Jul 30, 2025
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Solution and Explanation

गद्यांश में स्पष्ट उल्लेख है कि जब बाज़ार में संबंधों और आपसी भाईचारे की भावना समाप्त हो जाती है, तब आपसी व्यवहार केवल वस्तु विनिमय (क्रय-विक्रय) तक सीमित हो जाता है। यह व्यापार का यंत्रवत् रूप है जहाँ "मानवता के लिए विदग्धता" नहीं रहती, बल्कि "व्यक्ति केवल वस्तु" बन जाता है।
ऐसे में ग्राहक भी एक 'उपभोक्ता इकाई' बनकर रह जाता है और उसका शोषण होना स्वाभाविक हो जाता है। न लाभ-हानि की नैतिकता बचती है, न मानवीयता की संवेदना। इसीलिए, सद्भाव का हास सीधे ग्राहक शोषण की स्थिति को जन्म देता है।
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Question: 3

‘ऐसे बाज़ार मानवता के लिए विडंबना हैं’ – पंक्ति में किस बाज़ार की ओर संकेत किया गया है?

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‘विडंबना’ जैसे शब्द नकारात्मक संकेत देते हैं — ऐसे में उत्तर हमेशा उस पहलू की ओर संकेत करता है जो मानव मूल्यों को ठेस पहुँचाता है।
Updated On: Jul 30, 2025
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Solution and Explanation

गद्यांश में बाज़ार की उस प्रवृत्ति की आलोचना की गई है जिसमें मनुष्य की मानवीयता, समता और मूल्य खो जाते हैं। जब बाजार केवल लाभ के सिद्धांत पर चलता है और सामाजिक असमानता को बढ़ावा देता है, तब वह मानवीय दृष्टिकोण से एक विडंबना बन जाता है।
यह विडंबना तब होती है जब 'एक की हानि में दूसरे का लाभ' जैसी स्थिति बनती है और बाजार में आर्थिक, सामाजिक असमानता का व्यवहारिक रूप सामने आता है। यही वह बाजार है जिसकी ओर पंक्ति "ऐसे बाज़ार मानवता के लिए विडंबना हैं" संकेत करती है।
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Question: 4

आत्मीयजन और पड़ोसी भी ग्राहक के रूप में दिखाई देना, किस प्रवृत्ति का सूचक है?

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जब किसी सामाजिक संबंध को बाज़ार के संदर्भ में देखा जाए, तो वह “उपभोक्तावाद” का संकेत होता है — न कि सामाजिक समानता या नैतिक मूल्य।
Updated On: Jul 30, 2025
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Solution and Explanation

गद्यांश में वर्णित ‘आत्मीयजन और पड़ोसी भी ग्राहक बन गए हैं’ यह दर्शाता है कि व्यक्ति के व्यक्तिगत और सामाजिक रिश्ते भी बाज़ार की दृष्टि से परिभाषित किए जाने लगे हैं। हर संबंध एक ‘खरीददार और विक्रेता’ के नजरिये से देखा जाने लगा है।
यह प्रवृत्ति उपभोक्तावादी सोच की प्रतीक है जिसमें रिश्तों का मूल्य उनकी उपयोगिता और आर्थिक लेन-देन से आंका जाता है। यह बाज़ार की मानसिकता का विस्तार है जिसमें व्यक्ति और उसके संबंध, उत्पाद और सेवा में परिवर्तित हो जाते हैं।
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Question: 5

गद्यांश में प्रयुक्त ‘मायावी शास्त्र’ का अभिप्राय है :

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मायावी’ शब्द जब किसी शास्त्र के साथ जुड़ता है, तो उसका अर्थ नकारात्मक, भ्रमपूर्ण और छलयुक्त हो जाता है।
Updated On: Jul 30, 2025
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Solution and Explanation

‘मायावी शास्त्र’ शब्द का प्रयोग नकारात्मक संदर्भ में किया गया है।
यह किसी ऐसे शास्त्र की ओर संकेत करता है जो लोगों को भ्रमित करता है या छल-कपट के मार्ग को प्रशस्त करता है।
गद्यांश में यह दर्शाया गया है कि इस प्रकार के शास्त्र से नैतिक मूल्यों का ह्रास होता है और व्यक्ति वास्तविकता से भटक जाता है। 
अतः ‘मायावी शास्त्र’ का अभिप्राय है – ऐसा शास्त्र जो छल-कपट को बढ़ावा देता हो।

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