'अग्रपूजा' खण्डकाव्य की कथावस्तु महाभारत के राजसूय यज्ञ और शिशुपाल वध के प्रसंग पर आधारित है। इसे छः सर्गों में विभाजित किया गया है।
कथावस्तु का सार:
पूर्वाभास एवं आयोजन: कथा का प्रारम्भ श्रीकृष्ण के हस्तिनापुर से लौटने से होता है, जहाँ दुर्योधन ने संधि का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया है, जिससे युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। इधर, युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ की तैयारी करते हैं।
यज्ञ का आयोजन: खाण्डवप्रस्थ (इन्द्रप्रस्थ) में राजसूय यज्ञ का भव्य आयोजन होता है। देश-विदेश के सभी राजा, ऋषि-मुनि और विद्वान् पधारते हैं।
अग्रपूजा का प्रश्न: यज्ञ में प्रश्न उठता है कि सर्वप्रथम किसकी पूजा (अग्रपूजा) की जाए। भीष्म पितामह सभी की सहमति से भगवान श्रीकृष्ण को अग्रपूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ पात्र बताते हैं।
शिशुपाल का विरोध: चेदि-नरेश शिशुपाल इस प्रस्ताव का घोर विरोध करता है और भरी सभा में श्रीकृष्ण को अपशब्द कहने लगता है।
शिशुपाल-वध: श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की माता को उसके सौ अपराध क्षमा करने का वचन दिया था। जब शिशुपाल के अपराधों की संख्या सौ से अधिक हो जाती है, तो श्रीकृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर देते हैं।
यज्ञ की समाप्ति: शिशुपाल वध के बाद यज्ञ निर्विघ्न सम्पन्न होता है। सभी युधिष्ठिर को सम्राट के रूप में स्वीकार करते हैं और उन्हें बधाई देते हैं।
इस प्रकार, खण्डकाव्य धर्म की अधर्म पर विजय के संदेश को प्रस्तुत करता है।