'अग्रपूजा' खण्डकाव्य का 'प्रस्थान' सर्ग (प्रथम सर्ग) पाण्डवों के वनवास से लौटने और उनके भावी जीवन की चिंताओं पर आधारित है। इसका कथानक संक्षेप में इस प्रकार है:
पाण्डव बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास सफलतापूर्वक पूरा करके वापस लौटते हैं।
वे खाण्डवप्रस्थ नामक वन में अपना डेरा डालते हैं। यहाँ धर्मराज युधिष्ठिर अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। वे सोचते हैं कि क्या दुर्योधन बिना युद्ध के उनका आधा राज्य वापस करेगा।
युधिष्ठिर युद्ध की विभीषिका से परिचित हैं और किसी भी कीमत पर युद्ध को टालना चाहते हैं। वे अपने भाइयों और द्रौपदी के साथ इस विषय पर विचार-विमर्श करते हैं।
द्रौपदी और भीम युद्ध के पक्ष में हैं, जबकि युधिष्ठिर शांति चाहते हैं।
अंत में, श्रीकृष्ण के सुझाव पर युधिष्ठिर हस्तिनापुर के लिए प्रस्थान करते हैं ताकि शांतिपूर्वक अपना अधिकार प्राप्त करने का प्रयास किया जा सके।
इस सर्ग में कवि ने युधिष्ठिर की धर्मपरायणता, शांतिप्रियता और भविष्य की चिंताओं का सुंदर चित्रण किया है। यहीं से राजसूय यज्ञ की पृष्ठभूमि भी तैयार होती है।