'पूर्वाभास' 'अग्रपूजा' खण्डकाव्य का द्वितीय सर्ग है। इसका कथानक युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में 'अग्रपूजा' के प्रसंग पर आधारित है, जो भविष्य में होने वाले महाभारत युद्ध का पूर्वाभास देता है। इसका कथानक इस प्रकार है:
यज्ञ का आयोजन: युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में देश-विदेश के राजा, ऋषि-मुनि और विद्वान् पधारते हैं। श्रीकृष्ण भी इस यज्ञ में सम्मिलित होते हैं।
अग्रपूजा का प्रश्न: जब यज्ञ में सर्वप्रथम पूजनीय व्यक्ति (अग्रपूजा) के चयन का प्रश्न उठता है, तो युधिष्ठिर पितामह भीष्म से सलाह माँगते हैं।
श्रीकृष्ण का चयन: भीष्म सभी की उपस्थिति में श्रीकृष्ण को ही अग्रपूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ पात्र बताते हैं और उनके गुणों का बखान करते हैं। सभी राजा इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं।
शिशुपाल का विरोध: चेदि देश का राजा शिशुपाल इस प्रस्ताव का घोर विरोध करता है। वह क्रोध में आकर भीष्म और श्रीकृष्ण को अपमानजनक शब्द कहता है और उन्हें अपशब्द कहता है।
श्रीकृष्ण का धैर्य और शिशुपाल का वध: श्रीकृष्ण शिशुपाल की माता को दिए वचन के कारण उसके सौ अपमानों को क्षमा करते हैं। किन्तु जब शिशुपाल अपनी सीमा लांघ जाता है, तो श्रीकृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर देते हैं।
महाभारत का पूर्वाभास: शिशुपाल के वध की घटना से सभा में उपस्थित दुर्योधन आदि कौरव पाण्डवों के शत्रु बन जाते हैं और यहीं से भविष्य में होने वाले महाभारत युद्ध की नींव पड़ जाती है। इसी कारण इस सर्ग का नाम 'पूर्वाभास' है।