'अग्रपूजा' खण्डकाव्य में श्रीकृष्ण को नायक के रूप में चित्रित किया गया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
अलौकिक पुरुष: श्रीकृष्ण एक दैवीय शक्ति सम्पन्न पुरुष हैं। वे त्रिकालदर्शी हैं और भविष्य में होने वाली घटनाओं को जानते हैं।
धर्म-संस्थापक: वे पृथ्वी पर धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए अवतरित हुए हैं। शिशुपाल जैसे अधर्मी का वध करके वे इसी उद्देश्य की पूर्ति करते हैं।
गुण-ग्राहक: वे गुणों का सम्मान करते हैं। वे युधिष्ठिर के धर्म, भीष्म की प्रतिज्ञा और विदुर की नीति की प्रशंसा करते हैं।
शान्ति के अग्रदूत: वे अंत तक युद्ध को टालने का प्रयास करते हैं और दुर्योधन को समझाने के लिए हस्तिनापुर जाते हैं।
लोक-कल्याणकारी: उनका प्रत्येक कार्य लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित होता है। वे अपनी व्यक्तिगत मान-अपमान की चिन्ता नहीं करते।
सरल स्वभाव: इतनी शक्तियों के स्वामी होते हुए भी उनका स्वभाव अत्यंत सरल और सौम्य है। वे पांडवों के सच्चे मित्र और मार्गदर्शक हैं।
इस प्रकार, 'अग्रपूजा' के श्रीकृष्ण एक आदर्श, धर्म-रक्षक और लोक-कल्याणकारी नायक हैं।