श्री रामबहोरी शुक्ल द्वारा रचित 'अग्रपूजा' खण्डकाव्य के नायक श्रीकृष्ण हैं। यह खण्डकाव्य महाभारत की उस घटना पर आधारित है जब युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण को अग्रपूजा (सर्वप्रथम पूजा) का सम्मान दिया जाता है। श्रीकृष्ण की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. अलौकिक शक्ति-संपन्न: श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना गया है। वे अनेक अलौकिक शक्तियों से संपन्न हैं, फिर भी वे एक सामान्य मनुष्य की तरह व्यवहार करते हैं।
2. परम राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ: श्रीकृष्ण एक कुशल राजनीतिज्ञ हैं। वे पाण्डवों को हर संकट से उबारने के लिए अपनी नीति-कुशलता का प्रयोग करते हैं। शिशुपाल के वध की घटना उनकी राजनीतिक दूरदर्शिता का प्रमाण है।
3. धर्म, सत्य और न्याय के पक्षधर: वे सदैव धर्म और न्याय का पक्ष लेते हैं। राजसूय यज्ञ में वे युधिष्ठिर का साथ देते हैं क्योंकि युधिष्ठिर धर्म के प्रतीक हैं।
4. पाण्डवों के सच्चे हितैषी: श्रीकृष्ण पाण्डवों के परम मित्र और हितैषी हैं। वे हर पग पर उनका मार्गदर्शन करते हैं और संकट के समय उनकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
5. विनम्र और निरभिमानी: अपार शक्तियों के स्वामी होते हुए भी श्रीकृष्ण में अहंकार लेशमात्र भी नहीं है। वे यज्ञ में ब्राह्मणों के पैर धोने जैसा कार्य भी सहजता से करते हैं, जो उनकी विनम्रता को दर्शाता है।
इस प्रकार, 'अग्रपूजा' के नायक श्रीकृष्ण एक आदर्श लोकनायक, कुशल राजनीतिज्ञ और धर्म के रक्षक हैं।