List of practice Questions

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : 
नाम बड़ा है या रूप? पद पहले है या पदार्थ? 
पदार्थ सामने है, पद नहीं सूझ रहा है। 
मन व्याकुल हो गया। 
स्मृतियों के पंख फैलाकर सुदूर अतीत के कोनों में झाँकता रहा। 
सोचता हूँ इसमें व्याकुल होने की क्या बात है? 
नाम में क्या रखा है – 'बाह्यद देस्सर इन द नेम'! 
नाम की ज़रूरत ही हो तो सौ दिए जा सकते हैं। 
सुस्मिता, गिरिकांता धरतीधकेल, पहाड़फोड़, पातालभेद! 
पर मन नहीं मानता। 
नाम इसलिए बड़ा नहीं है कि वह नाम है। 
वह इसलिए बड़ा होता है कि उसे सामाजिक स्वीकृति मिली होती है। 
रूप व्यक्ति सत्य है, नाम समाज सत्य। 
नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। 
आधुनिक शिक्षित लोग जिसे ‘सोशल सेन्शन’ कहते हैं।

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द उसके मन में काँटे की तरह चुभ रहा है -- 
'किसके भरोसे यहाँ हूँगी? एक नौकर था, वह भी कल भाग गया। 
गाय खूंटे से बंधी भूखी-प्यासी हिनक रही है। 
मैं किसके लिए इतना दुख झेलूँ?' हरगोबिन ने अपने पास बैठे हुए एक यात्री से पूछा, 
‘क्यों भाई साहेब, थाना विंधपुर में डाकगाड़ी रुकती है या नहीं?’ यात्री ने मानो कुकुरकर कहा, “थाना विंधपुर में सभी गाड़ियाँ रुकती हैं।” हरगोबिन ने भाँप लिया, यह आदमी चिड़चिड़े स्वभाव का है, इससे कोई बातचीत नहीं जमेगी। 
वह फिर बड़ी बहुरिया के संवाद को मन-ही-मन दोहराने लगा लेकिन, संवाद सुनाते समय वह अपने क्लेशों को कैसे संभाल सकेगा! 
बड़ी बहुरिया संवाद कहते समय जहाँ-जहाँ रोई है, वहाँ वह रोयेगा।