Question:

तुलसीदास स्वयं को किसका दास मानते हैं ? 
 

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जब किसी कवि या भक्त की आत्म-व्याख्या पूछी जाए, तो उसकी काव्यधारा और भक्ति केंद्र को पहचानना अत्यंत आवश्यक होता है।
Updated On: Jul 25, 2025
  • नियमों का
  • परिस्थितियों का
  • स्वयं का
  • राम का
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The Correct Option is D

Solution and Explanation

तुलसीदास अपनी रचनाओं में सदैव भगवान राम को ही सर्वोपरि मानते हैं। उनकी भक्ति रामकेंद्रित है और वह स्वयं को “राम का दास” कहते हैं।
यह उनकी भक्ति की पराकाष्ठा और समर्पण की चरम सीमा को दर्शाता है।
उनकी पंक्तियाँ जैसे — “तुलसीदास चिरंजीव रघुपति दास” — उनके इस भाव को स्पष्ट करती हैं कि वे न तो समाज, न परिस्थितियों, न ही किसी नियम के अधीन हैं — वे केवल राम के भक्त हैं।
रामचरितमानस और अन्य काव्य रचनाओं में भी तुलसीदास ने स्वयं को ‘राम का सेवक’, ‘राम का कीर्तिगायक’ और ‘राम का अनन्य दास’ कहा है।
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