'रश्मिरथी' खण्डकाव्य में कर्ण का चरित्र एक जटिल और प्रेरणादायक है। कर्ण का जन्म अपमानजनक स्थिति में हुआ था, लेकिन उसने अपने जीवन को संघर्ष, बलिदान और निष्ठा से परिपूर्ण किया। कर्ण का चरित्र धर्म, न्याय, मित्रता और शौर्य का प्रतीक है।
कर्ण का जन्म और उसकी अपमानजनक स्थिति: कर्ण का जन्म कुंती से हुआ था, लेकिन उसे अपने जन्म का कोई अधिकार नहीं था। उसकी माँ ने उसे छोड़ दिया और वह आचार्य परशुराम के पास शिक्षा प्राप्त करने गया। कर्ण के जीवन में जन्म से जुड़े कई संघर्ष थे, लेकिन उसने कभी अपने अस्तित्व से हार नहीं मानी।
कर्ण की मित्रता और वचनबद्धता: कर्ण का दुर्योधन के प्रति गहरी मित्रता थी, और वह हमेशा अपने मित्र के लिए निष्ठावान रहा। उसका यह गुण उसे एक महान नायक के रूप में स्थापित करता है।
कर्ण की वीरता और शौर्य: कर्ण ने युद्ध भूमि में अपनी वीरता का परिचय दिया, लेकिन उसे हमेशा धर्म और न्याय के प्रति संदेह रहा। वह हमेशा अपने कर्तव्यों और मित्रता के प्रति निष्ठावान रहा।
कर्ण का शाप और अंत: कर्ण के जीवन में कई शाप थे जो उसे अंत तक परेशान करते रहे। उसका जीवन एक कर्तव्य और धर्म के बीच जूझते हुए अंत होता है, जो उसे एक महान नायक बना देता है।
कर्ण का चरित्र संघर्षों और बलिदानों का प्रतीक है, जो अंततः उसे महानता और सम्मान की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।