Question:

सूक्ति की हिन्दी में व्याख्या कीजिए : सूक्ति: समत्वं योग उच्यते ।

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गीता से ली गई सूक्तियों की व्याख्या करते समय, 'योग', 'कर्म', 'धर्म' जैसे शब्दों के गीता-विशिष्ट अर्थ को समझाएँ। यह भी उल्लेख करें कि यह उपदेश किसने और किसे दिया था।
Updated On: Nov 17, 2025
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Solution and Explanation

व्याख्या:
प्रसंग: यह सूक्ति श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय से ली गई है। यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश का एक महत्वपूर्ण अंश है।
अर्थ: "समता (की भावना) ही योग कहलाती है।"
विस्तृत व्याख्या: इस सूक्ति में 'योग' की एक गहन परिभाषा दी गई है। सामान्यतः लोग योग को शारीरिक आसनों से जोड़ते हैं, किन्तु गीता के अनुसार योग का वास्तविक अर्थ है - मन की समता। इसका तात्पर्य है जीवन की हर परिस्थिति में मानसिक संतुलन बनाए रखना।
सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, मान-अपमान जैसी द्वंद्वात्मक परिस्थितियों में विचलित न होना, अविचल रहना ही समत्व है। जब व्यक्ति सफलता में अत्यधिक हर्षित और विफलता में अत्यधिक दुःखी नहीं होता, तो उसका मन स्थिर हो जाता है। मन की यही स्थिर और संतुलित अवस्था 'योग' है। यह अवस्था व्यक्ति को कर्मों के बंधन से मुक्त करती है और उसे परम शांति की ओर ले जाती है। अतः, योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक मानसिक और आध्यात्मिक साधना है जिसका लक्ष्य समत्व को प्राप्त करना है।
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