Question:

संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए : गुरुणा एवम् आज्ञप्तः महर्षिदयानन्दः एतद्देशवासिनो जनान् उद्धर्तुं कर्मक्षेत्रेऽवतारत् । सर्वप्रथमं हरिद्वारे कुम्भपर्वणि भागीरथीतटे पाखण्डखण्डिनीं पताकामस्थापयत् । ततश्च हिमाद्रिं गत्वा त्री वर्षाणि तपः अतप्यत । तदनन्तरमयं प्रतिपादितवान् ऋग्यजुस्सामाथर्वाणो वेदा नित्या ईश्वरकर्तृकाश्च ब्राह्मण-क्षत्रिय वैश्य शूद्राणां गुणकर्मस्वभावैः विभाग: न तु जन्मना, चत्वार एव आश्रमाः, ईश्वरः एक एव ब्रह्म-पितृ देवातिथि - बलि - वैश्वदेवाः पञ्च महायज्ञा: नित्यं करणीयाः । 'स्त्रीशूद्रौ वेदं नाधीयाताम् अस्य वाक्यस्य असारतां प्रतिपाद्य सर्वेषां वेदाध्ययनाधिकारं व्यवस्थापयत् । 
 

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महर्षि दयानन्द का योगदान समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समानता और वेदों के ज्ञान के प्रसार को बढ़ावा देना था। उनके सिद्धांत आज भी भारतीय समाज में महत्वपूर्ण हैं।
Updated On: Nov 14, 2025
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Solution and Explanation

महर्षि दयानन्द ने भारतीय समाज को सुधारने के लिए अपनी शिक्षाओं और उपदेशों से एक नई दिशा दी। सबसे पहले, हरिद्वार में कुम्भ मेला के दौरान उन्होंने पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ एक पताका स्थापित की। इसके बाद, उन्होंने हिमालय पर्वत पर तीन वर्षों तक कठोर तपस्या की। इसके पश्चात, वेदों के सत्य का प्रचार करते हुए उन्होंने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि वेद हमेशा नित्य हैं और भगवान के द्वारा रचित हैं। उन्होंने चारों वर्णों—ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र—को उनके गुण, कर्म और स्वभाव के आधार पर विभाजित किया, न कि जन्म के आधार पर। वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के बीच भेदभाव के खिलाफ थे और उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सभी को वेद अध्ययन का अधिकार है। इसके अलावा, महर्षि दयानन्द ने यह भी कहा कि स्त्री और शूद्रों को वेद नहीं पढ़ने चाहिए—इसका उद्देश्य केवल यह था कि समाज में सभी को समान अधिकार और अवसर मिले।
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