'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य में श्रवणकुमार का चरित्र आदर्श पुत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वह अपनी निःस्वार्थ भक्ति, सेवा और कर्तव्यपरायणता के लिए प्रसिद्ध है।
श्रवणकुमार की आज्ञाकारिता: श्रवणकुमार अपने माता-पिता की सेवा को ही अपना सबसे बड़ा धर्म मानते थे। उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह से अपने माता-पिता की देखभाल के लिए समर्पित कर दिया था।
त्याग और निःस्वार्थ प्रेम: श्रवणकुमार ने अपने माता-पिता की हर इच्छा पूरी करने के लिए कठिनाइयों का सामना किया। उनका जीवन निःस्वार्थ प्रेम और सेवा का प्रतीक है।
संघर्ष और बलिदान: जंगल में अपने अंधे माता-पिता के लिए जल लाने के दौरान राजा दशरथ के बाण से घायल होकर उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद उनके माता-पिता ने भी प्राण त्याग दिए, जो उनके प्रति उनकी अटूट भक्ति को दर्शाता है।
श्रवणकुमार की प्रेरणा: उनका चरित्र भारतीय संस्कृति में आदर्श पुत्र के रूप में स्थापित है, जो आज भी माता-पिता की सेवा और कर्तव्यपालन की प्रेरणा देता है।
श्रवणकुमार का जीवन त्याग, सेवा और कर्तव्यनिष्ठा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो हमें अपने माता-पिता के प्रति स्नेह और सम्मान की भावना रखने की सीख देता है।