'श्रवण कुमार' खण्डकाव्य के नायक श्रवण कुमार को त्याग, कर्तव्यपरायणता और आदर्श पुत्र धर्म का प्रतीक माना जाता है। उनका चरित्र अत्यंत प्रेरणादायक और समाज के लिए अनुकरणीय है।
माता-पिता के प्रति श्रद्धा:
श्रवण कुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता की सेवा में पूर्ण रूप से समर्पित थे। वे हर परिस्थिति में उनकी देखभाल करते थे और जीवनभर उनके आदेशों का पालन किया।
त्याग और परिश्रम:
वे माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर तीर्थ यात्रा कराते हैं और स्वयं कठिनाइयाँ सहते हैं। उनका यह त्याग भारतीय संस्कृति में आदर्श पुत्र की मिसाल बन गया है।
कर्तव्यनिष्ठ और सहनशील:
अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी वे अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होते। भूख-प्यास, थकान और कठिन मार्गों को पार करते हुए भी वे माता-पिता की सेवा में लगे रहते हैं।
दुखद अंत और त्याग:
राजा दशरथ के तीर से घायल होने के बाद भी वे माता-पिता के प्रति चिंता व्यक्त करते हैं और उनकी अंतिम इच्छा पूरी करवाने के लिए कहते हैं।
भारतीय संस्कृति में महत्त्व:
उनका जीवन आदर्श पुत्र धर्म का प्रतीक बन चुका है और उनकी कहानी आज भी पितृ भक्ति की प्रेरणा देती है।
श्रवण कुमार का चरित्र त्याग, कर्तव्य और भक्ति का सर्वोच्च उदाहरण है। उनकी कहानी भारतीय समाज में माता-पिता के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना को उजागर करती है।