‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में श्रवण कुमार का चरित्र आदर्श भक्ति, सेवा और कर्तव्यपरायणता का प्रतीक है। वे माता-पिता के प्रति अटूट प्रेम और निष्ठा के प्रतीक हैं, जिन्होंने अपनी संपूर्ण जीवन यात्रा को उनकी सेवा में समर्पित कर दिया।
श्रवण कुमार की भक्ति:
श्रवण कुमार बचपन से ही अपने माता-पिता के प्रति अत्यंत श्रद्धालु और सेवा-भाव रखने वाले पुत्र थे। उन्होंने अपने नेत्रहीन माता-पिता की देखभाल को ही अपना परम धर्म माना।
कर्तव्यनिष्ठता:
उन्होंने अपने माता-पिता की इच्छाओं को सर्वोपरि रखा और उन्हें तीर्थ यात्रा कराने का संकल्प लिया, जिसे उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी निभाया।
संघर्ष और बलिदान:
मार्ग में राजा दशरथ के तीर से गलती से उनका वध हो गया, लेकिन मृत्यु के समय भी उन्होंने अपने माता-पिता की चिंता की और उनकी सेवा का भाव अंतिम क्षण तक बनाए रखा।
श्रवण कुमार का प्रभाव:
उनकी मृत्यु ने राजा दशरथ को गहरे दुःख में डाल दिया, जिससे आगे चलकर रामायण की कथा में महत्वपूर्ण मोड़ आया।
श्रवण कुमार का चरित्र भारतीय संस्कृति में माता-पिता की सेवा और त्याग की सर्वोच्च मिसाल है, जो आज भी समाज के लिए प्रेरणादायक है।