Question:

श्लोक की हिन्दी में व्याख्या कीजिए : श्लोक: सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम् । एतद्विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ।।

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दार्शनिक श्लोकों की व्याख्या करते समय, उसके मूल संदेश को पकड़ें। इस श्लोक का मूल संदेश है - स्वाधीनता में सुख और पराधीनता में दुःख। इसे अपने शब्दों में उदाहरण सहित समझाएँ।
Updated On: Nov 17, 2025
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Solution and Explanation

व्याख्या:
प्रसंग: यह श्लोक मनुस्मृति से उद्धृत है और इसमें सुख और दुःख की सार्वभौमिक परिभाषा दी गई है।
अर्थ: जो कुछ भी दूसरे के वश में है, वह सब दुःख है और जो कुछ भी अपने वश में है, वह सब सुख है। सुख और दुःख का यही लक्षण संक्षेप में जानना चाहिए।
विस्तृत व्याख्या: इस श्लोक में महर्षि मनु सुख और दुःख का एक बहुत ही सरल किन्तु गहरा लक्षण बताते हैं। उनके अनुसार, पराधीनता ही दुःख का मूल कारण है। जब हमारी प्रसन्नता, हमारी आवश्यकताएँ या हमारे कार्य दूसरों पर निर्भर करते हैं, तो हमें दुःख का अनुभव होता है, क्योंकि हम उस स्थिति को नियंत्रित नहीं कर सकते। इसके विपरीत, जब हम आत्मनिर्भर होते हैं और हमारे कार्य एवं निर्णय हमारे अपने वश में होते हैं, तो हम सुख का अनुभव करते हैं। आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन ही सच्चे सुख की कुंजी है। यह श्लोक हमें भौतिक वस्तुओं या दूसरों की स्वीकृति पर अपनी खुशी को आधारित करने के बजाय आंतरिक शक्ति और आत्मनिर्भरता विकसित करने के लिए प्रेरित करता है। यही सुख और दुःख का सार है।
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