‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग में महाभारत युद्ध से पूर्व श्रीकृष्ण और कर्ण के बीच एक महत्वपूर्ण संवाद होता है, जिसमें श्रीकृष्ण कर्ण को उसकी जन्मसत्यता बताते हैं और उसे पांडवों का साथ देने का प्रस्ताव रखते हैं।
कृष्ण का प्रस्ताव:
श्रीकृष्ण कर्ण से कहते हैं कि वह कुंती का पुत्र और पांडवों का बड़ा भाई है। यदि वह पांडवों का साथ देता है, तो उसे राजगद्दी प्राप्त होगी।
कर्ण का धर्मसंकट:
यह सुनकर कर्ण भावुक हो उठता है, लेकिन वह दुर्योधन के प्रति अपनी मित्रता और निष्ठा को नहीं छोड़ता। वह कहता है कि उसने जीवनभर सूतपुत्र का अपमान सहा है और अब वह अपने वचनों से पीछे नहीं हट सकता।
स्वाभिमान और त्याग:
कर्ण ने अर्जुन से युद्ध करने का निश्चय किया, भले ही उसे अपने जीवन की आहुति क्यों न देनी पड़े। उसने व्यक्तिगत लाभ और भावनाओं को छोड़कर कर्तव्य का पालन किया।
कर्ण और कुंती का संवाद:
इसके पश्चात कुंती कर्ण से मिलकर उसे अपने पुत्र होने का आग्रह करती हैं, लेकिन कर्ण उन्हें वचन देता है कि वह अर्जुन को नहीं मारेगा, परंतु वह युद्ध अवश्य लड़ेगा।
तृतीय सर्ग कर्ण के चरित्र की महानता को दर्शाता है, जिसमें वह अपने सिद्धांतों और धर्म के प्रति अडिग रहता है। यह प्रसंग त्याग, निष्ठा और धर्म के प्रति समर्पण का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है।