पद्यांशं पठित्वा निर्दिष्टाः
कृतीः कुरुत। रामाभिषेके जलमाहरन्त्याहस्तात् सृतो हेमघटो युवत्याः। सोपानमार्गेण करोति शब्दं..... रथस्यैकं चक्रं भुजगयमिताः सप्त तुरगाः निरालम्बो मार्गश्चरणविकलः सारथिरपि। रविर्यात्येवान्तं प्रतिदिनमपारस्य नभसः क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे ॥ वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी। तथाप्यादाय वैदेहीं कुशली न गमिष्यसि ॥
पद्यांशं पठित्वा निर्दिष्टे कृती कुरुत।
(क) पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत। कः शब्दं करोति ?
पद्यांशं पठित्वा निर्दिष्टे कृती कुरुत।
(ख) चतुर्थपदं लिखत।
(1) निरालम्बः मार्गः : चरणविकलः \(\underline{\hspace{1cm}}\)
निरालम्बः मार्गः : चरणविकलः सारथि।
यहाँ "निरालम्बः मार्गः" और "चरणविकलः" एक दूसरे से संबंधित हैं, और यह सारथि द्वारा रथ चलाने के संदर्भ में हैं।
पद्यांशं पठित्वा निर्दिष्टे कृती कुरुत।
(ख)चतुर्थपदं लिखत।
(2) एकम् : चक्रम् : : सप्त : \(\underline{\hspace{1cm}}\)
एकम् : चक्रम् : : सप्त : तुरगाः।
यहां 'एकम्' और 'चक्रम्' का सम्बन्ध एक रथ के पहिए से है, और 'सप्त' और 'तुरगाः' का सम्बन्ध रथ के सात घोड़ों से है।
पद्यांशं पठित्वा निर्दिष्टे कृती कुरुत।
(ग) पूर्वपदं लिखत।
(1) वृद्धोऽहम् = \(\underline{\hspace{1cm}}\) + अहम्।
वृद्धोऽहम् = युवा + अहम्।
यह वाक्य वृद्ध और युवा की स्थिति को व्यक्त करता है, जहां "वृद्धोऽहम्" वृद्ध व्यक्ति और "युवा" युवा व्यक्ति को दर्शाता है।
पद्यांशं पठित्वा निर्दिष्टे कृती कुरुत।
(ग) पूर्वपदं लिखत।
(2) रथस्यैकम् = \(\underline{\hspace{1cm}}\) + एकम्।
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