निम्नलिखित उपयुक्त पंक्तियों को पकड़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए: पंक्तियाँ: घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो, आज बार-बार पर यह दीपक मुझे नहीं। यह क्षीणित का (दीप) सा रहा विधन है। शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ भक्ति से दिया हुआ, यह स्वातंत्रता-दीप कभी न नाव हो, और का बहाव हो, आज पंख-धार पर यह दीपक बुझने नहीं। यह स्वातंत्र का दीपक प्राप्त के समान है।
(a) पंक्तियों का शीर्षक लिखिए।
(b) पंक्तियों का सार लिखिए।
(c) स्वतंत्रता के कवि ने दीपक क्यों कहा है?
निम्नलिखित पिठत पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए :
जीवन नैया
मँझधार में डोले,
सँभाले कौन ?
रंग-बिरंगे
रंग-संग लेकर
आया फागुन।
काँटों के बीच
खिलखिलाता फूल
देता प्रेरणा।
(1)(ii) आकृति पूर्ण कीजिए :

निम्नलिखित पिठत पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए :
जीवन नैया
मँझधार में डोले,
सँभाले कौन ?
रंग-बिरंगे
रंग-संग लेकर
आया फागुन।
काँटों के बीच
खिलखिलाता फूल
देता प्रेरणा।
(1)आकृति पूर्ण कीजिए :
(i)

निम्नलिखित पिठत पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा ॥
दामिनि दमक रहहिं घन माहीं। खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं ॥
बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ ॥
बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे ॥
छुद्र नदी भरि चली तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई ॥
भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहिं माया लपटानी ॥
समिटि-समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा ॥
सरिता जल जलनिधि महुँ जाई। होई अचल जिमि जिव हरि पाई ॥
(1)उत्तर लिखिए :
\[\begin{array}{|l|l|l|} \hline (i) & गरजने वाले & - \dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots \\ \text{(ii)} & \text{चमकने वाली} & \text{- \dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots} \\ \hline \text{(iii)} & \text{बूँद के आघात सहने वाले} & \text{- \dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots} \\ \hline \text{(iv)} & \text{दुष्ट के वचन सहने वाले} & \text{- \dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots\dots} \\ \hline \end{array}\]
निम्नलिखित पिठत पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम।
'यवन' को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि।
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं।......
चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न।
(2)(i) पद्यांश से लय-ताल युक्त शब्द ढूँढ़कर लिखिए :
निम्नलिखित पिठत पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम।
'यवन' को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि।
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं।......
चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न।
(1) कृति पूर्ण कीजिए :

निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबंध लिखिए:
(i) पर्यावरण की सुरक्षा
(ii) दुखों की उपयोगिता
(iii) विद्यार्थी और अनुशासन
(iv) राष्ट्रीय एकता और अखंडता
(v) इंटरनेट का दैनिक जीवन में अनुपयोग
परीक्षा की तैयारी की जानकारी देते हुए पिता को पत्र लिखिए।
द्वनि विस्तारक यंत्रों पर प्रतिबंध लगाने हेतु जिला सचिव महोदय को प्रार्थना पत्र लिखिए।
निम्नलिखित गद्यांश की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए: गद्यांश: पैसा पावर है। पर उसके स्वभाव में आस-पास सालों तक जमा न जमा हो तो क्या वह ताकत पावर है! पैसे को देखने के लिए बैंक-हिसाब सीट, पर माल-असबाब, मकान-कोठी तो अनदेखे भी दीखते हैं। पैसे के उस 'पेसींग पावर' के प्रयोग में ही पावर का खेल है।
निम्नलिखित गद्यांश की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए: गद्यांश: एक बार वह 'डांग' देखने श्यामनगर शेला गया। पहलवानों की कुस्ती और डांव-पेच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और होल की ललकारती हुई आवाज़ ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना कुछ सोचे-समझे दंगल में 'शेर के बच्चों' को चुनौति दे दी।