Question:

निम्नलिखित संस्कृत गद्यांश का संदर्भ-सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए : एकदा बहवः जनाः धूमयानम् (रेल) आरुह्य नगरं प्रति गच्छन्ति स्म। तेषु केचित् ग्रामीणाः केचिच्च नागरिकाः आसन्। मौनं स्थितेषु तेषु एकः नागरिकः ग्रामीणान् उपहसन् अकथयत् “ग्रामीणा : अद्यापि पूर्ववत् अशिक्षिताः अज्ञाश्च सन्ति। न तेषां विकासः अभवत् न च भवितुं शक्नोति।" तस्य तादृशं जल्पनं श्रुत्वा कोऽपि चतुरः ग्रामीणः अब्रवीत् “भद्र नागरिक ! भवान् एव किञ्चित् ब्रवीतु यतो हि भवान् शिक्षितः बहुज्ञः च अस्ति।' इदम् आकर्ण्य स नागरिकः सदर्प ग्रीवाम् उन्नमय्य अकथयत्, “कथयिष्यामि, परं पूर्व समयः विधातव्यः। " 
 

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अनुवाद करते समय पात्रों के मनोभावों (जैसे- नागरिक का घमंड, ग्रामीण की चतुराई) को अपने शब्दों में व्यक्त करने का प्रयास करें, इससे अनुवाद अधिक सजीव लगता है।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

चरण 1: संदर्भ की पहचान:
प्रस्तुत गद्यांश एक ग्रामीण और एक शहरी नागरिक के बीच रेलगाड़ी में हुए संवाद का वर्णन करता है, जो संस्कृत के एक रोचक कथा-पाठ से लिया गया है।
चरण 2: संदर्भ लेखन:
संदर्भ: प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के संस्कृत खण्ड के 'प्रबुद्धो ग्रामीणः' (बुद्धिमान ग्रामीण) नामक पाठ से उद्धृत है।
चरण 3: हिन्दी अनुवाद:
अनुवाद: एक बार बहुत से लोग रेलगाड़ी पर चढ़कर नगर की ओर जा रहे थे। उनमें कुछ ग्रामीण थे और कुछ शहरी नागरिक थे। उनके चुपचाप बैठे होने पर एक शहरी नागरिक ने ग्रामीणों का उपहास करते हुए कहा, "ग्रामीण आज भी पहले की तरह अशिक्षित और अज्ञानी हैं। न उनका विकास हुआ है और न हो सकता है।" उसकी ऐसी बकवास सुनकर किसी चतुर ग्रामीण ने कहा, "हे श्रेष्ठ नागरिक! आप ही कुछ कहें क्योंकि आप शिक्षित और बहुत ज्ञानी हैं।" यह सुनकर उस नागरिक ने घमंड से गर्दन को ऊँचा उठाकर कहा, "कहूँगा, परन्तु पहले शर्त लगा लेनी चाहिए।"
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