Question:

संस्कृतभाषा पुराकाले सर्वसाधारणजनानां वाग्व्यवहारभाषा चासीत् । तत्रेदं श्रूयते यत् पुरा कोऽपि नरः काष्ठभारं स्वशिरसि निधाय काष्ठं विक्रेतुमापणं गच्छति स्म । मार्गे नृपः तेनामिलदपृच्छच्च, भो ! भारं बाधति ? काष्ठभारवाहको नृपं तत्प्रश्नोत्तरस्य प्रसङ्गेऽवदत् – “भारं न बाधते राजन् यथा बाधति बाधते ।” अनेनेदं सुतरामायाति यत्प्राचीनकाले भारतवर्षे संस्कृतभाषा साधारणजनानां भाषा आसीदिति ।

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इस गद्यांश का अनुवाद करते समय संवाद के व्यंग्यार्थ को समझना महत्वपूर्ण है। यहाँ एक साधारण लकड़हारा भी संस्कृत व्याकरण का इतना ज्ञाता है कि वह राजा की त्रुटि को सुधारता है, जो यह सिद्ध करता है कि संस्कृत जनभाषा थी।
Updated On: Nov 17, 2025
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Solution and Explanation

हिन्दी में अनुवाद:
संस्कृत भाषा प्राचीन काल में सभी साधारण लोगों की बोलचाल की भाषा थी। इस विषय में यह सुना जाता है कि प्राचीन काल में कोई व्यक्ति लकड़ी के बोझ को अपने सिर पर रखकर लकड़ी बेचने के लिए बाजार जा रहा था। रास्ते में राजा उससे मिले और पूछा, "अरे! क्या बोझ कष्ट दे रहा है?" लकड़ी का बोझ ढोने वाले ने राजा से उस प्रश्न के उत्तर के प्रसंग में कहा - "हे राजन्! बोझ उतना कष्ट नहीं दे रहा है, जितना 'बाधति' (क्रियापद का आपका प्रयोग) कष्ट दे रहा है।" (यहाँ भारवाहक राजा को व्याकरण की त्रुटि बता रहा है कि 'भार' के साथ 'बाधते' (आत्मनेपद) क्रिया का प्रयोग होना चाहिए, न कि 'बाधति' (परस्मैपद)।) इससे यह भली-भाँति ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में भारतवर्ष में संस्कृत भाषा साधारण लोगों की भाषा थी।
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