सन्दर्भ: यह श्लोक जीवन के परिवर्तनशील और अनिश्चित रूप को दर्शाता है। इसमें सूर्य के उदय और अस्त होने का उदाहरण देते हुए यह बताया गया है कि जैसे सूर्य का उदय और अस्त होना नियमित रूप से होता है, वैसे ही महात्माओं के जीवन में भी अच्छे और बुरे समय आते रहते हैं। यह श्लोक यह भी संकेत करता है कि विपत्ति और समृद्धि के समय में महात्मा वही रहते हैं, उनका आंतरिक गुण वही बना रहता है।
अनुवाद:
"सूर्य की तरह, जो ताम्र (लाल) रंग में उदित होता है और फिर उसी रंग में अस्त होता है, वैसे ही महात्माओं का जीवन भी परिवर्तनशील होता है। उनके जीवन में समृद्धि और विपत्ति दोनों ही आते हैं, लेकिन उनके आंतरिक गुण और रूप में कोई परिवर्तन नहीं आता।"
यह श्लोक जीवन के उतार-चढ़ाव को दर्शाता है और यह सिखाता है कि महात्मा समृद्धि और विपत्ति के बावजूद अपने गुणों और धैर्य में समान रहते हैं।