निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
हर की पौड़ी पर साँझ कुछ अलग रंग में उतरती है। दीया-बाती का समय या कह लो आरती की बेला। पाँच बजे जो फूलों के दोने एक-एक रुपए के बिक रहे थे, इस वक्त दो-दो के हो गए हैं। भक्तों को इससे कोई शिकायत नहीं। इतनी बड़ी-बड़ी मनोकामना लेकर आए हुए हैं। एक-दो रुपए का मुँह थोड़े ही देखना है। गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वर्दी में मस्तेदी से घूम रहे हैं। वे सबको सीढ़ियों पर बैठने की प्रार्थना कर रहे हैं। शांत होकर बैठिए, आरती शुरू होने वाली है। कुछ भक्तों ने स्पेशल आरती बोल रखी है। स्पेशल आरती यानी एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपए वाली। गंगा-तट पर हर छोटे-बड़े मंदिर पर लिखा है — ‘गंगा जी का प्राचीन मंदिर।’ पंडितगण आरती के इंतज़ाम में व्यस्त हैं। पीतल की नीलांजलि में सहस्त्र बातियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
‘‘पुर्ज़े खोलकर फिर ठीक करना उतना कठिन काम नहीं है, लोग सीखते भी हैं, सिखाते भी हैं, अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर जो घड़ीसाज़ी का इम्तहान पास कर आया है उसे तो देखने दो । साथ ही यह भी समझा दो कि आपको स्वयं घड़ी देखना, साफ़ करना और सुधारना आता है कि नहीं । हमें तो धोखा होता है कि परदादा की घड़ी जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्ज़े सुधारना तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते इत्यादि ।’’
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : ‘‘कुटज के ये सुंदर फूल बहुत बुरे तो नहीं हैं । जो कालिदास के काम आया हो उसे ज़्यादा इज़्ज़त मिलनी चाहिए । मिली कम है । पर इज़्ज़त तो नसीब की बात है । रहीम को मैं बड़े आदर के साथ स्मरण करता हूँ । दरियादिल आदमी थे, पाया सो लुटाया । लेकिन दुनिया है कि मतलब से मतलब है, रस चूस लेती है, छिलका और गुठली फेंक देती है । सुना है, रस चूस लेने के बाद रहीम को भी फेंक दिया गया था । एक बादशाह ने आदर के साथ बुलाया, दूसरे ने फेंक दिया ! हुआ ही करता है । इससे रहीम का मोल घट नहीं जाता । उनकी फक्कड़ाना मस्ती कहीं गई नहीं । अच्छे-भले कद्रदान थे । लेकिन बड़े लोगों पर भी कभी-कभी ऐसी वितृष्णा सवार होती है कि गलती कर बैठते हैं । मन खराब रहा होगा, लोगों की बेरुखी और बेकददानी से मुरझा गए होंगे – ऐसी ही मनःस्थिति में उन्होंने बिचारे कुटज को भी एक चपत लगा दी ।’’
निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी । दूभर दुख सो जाइ किमि काढी ॥
अब धनि देवस बिरह भा राती । जरै बिरह ज्यों दीपक बाती ॥
काँपा हिया जनावा सीऊ । तौ पै जाइ होइ सँग पीऊ ॥
घर घर चीर रचा सब काहूँ । मोर रूप रँग लै गा नाहू ॥
पलटि न बहुरा गा जो बिछोई । अबहूँ फिरै फिरै रँग सोई ॥
सियरि अगिनि बिरहिनि हिय जारा । सुलगि सुलगि दगधै भै छारा ॥
यह दुख दगध न जानै कंतू । जोबन जनम करै भसमंतू ॥
पिय सौं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा ऐ काग ।
सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग ॥
निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा;
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कडुवे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लंब बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा।
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो –
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
भारतेन्दु-मंडल की किसी सजीव स्मृति के प्रति मेरी कितनी उत्कंठा रही होगी, यह अनुमान करने की बात है। मैं नगर से बाहर रहता था। एक दिन बालकों की मंडली जोड़ी गई। जो चौधरी साहब के मकान से परिचित थे, वे अगुवा हुए। मील डेढ़ मील का सफर तय हुआ। पत्थर के एक बड़े मकान के सामने हम लोग जा खड़े हुए। नीचे का बरामदा खाली था। ऊपर का बरामदा सघन लताओं के जाल से आवृत्त था। बीच-बीच में खंबे और खुली जगह दिखाई पड़ती थी। उसी ओर देखने के लिए मुझसे कहा गया। कोई दिखाई न पड़ा। सड़क पर कई चक्कर लगे। कुछ देर पीछे एक लड़के ने ऊँगली से ऊपर की ओर इशारा किया। लता-प्रतान के बीच एक मूर्ति खड़ी दिखाई पड़ी। ....... बस, यही पहली झाँकी थी।
Write a letter to the editor of a local newspaper expressing your concerns about the increasing “Pollution levels in your city”. You are an environmentalist, Radha/Rakesh, 46, Peak Colony, Haranagar. You may use the following cues along with your own ideas: 

