‘गाँव में मूल्य परिवर्तन अधिक स्पष्ट रूप से पहचाना जाता है।’ ‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर सटीक उदाहरण इस कथन की पुष्टि कीजिए।
‘सूरदास में सरलता भी है और व्यावहारिक चतुराई भी’ — ‘सूरदास की झोंपड़ी’ पाठ के आधार पर इस दृष्टि से उसके व्यक्तित्व का विश्लेषण कीजिए।
लेखक की मालवा-यात्रा के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि पहले लोगों में आत्मीयता और अपनत्व का भाव अधिक था। आज इसमें जो परिवर्तन आया है, उसके कारणों को स्पष्ट कीजिए।
‘प्रेमचंद’ के व्यक्तित्व की सामंती प्रवृत्तियों को सटीक उदाहरण सामने रखिए।
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ के आधार पर औद्योगीकरण के माध्यम से हुए पर्यावरण विनाश और भावी संकट पर प्रकाश डालिए।
देवसेना के जीवन-संघर्ष को अपने शब्दों में लिखिए।
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
हर की पौड़ी पर साँझ कुछ अलग रंग में उतरती है। दीया-बाती का समय या कह लो आरती की बेला। पाँच बजे जो फूलों के दोने एक-एक रुपए के बिक रहे थे, इस वक्त दो-दो के हो गए हैं। भक्तों को इससे कोई शिकायत नहीं। इतनी बड़ी-बड़ी मनोकामना लेकर आए हुए हैं। एक-दो रुपए का मुँह थोड़े ही देखना है। गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वर्दी में मस्तेदी से घूम रहे हैं। वे सबको सीढ़ियों पर बैठने की प्रार्थना कर रहे हैं। शांत होकर बैठिए, आरती शुरू होने वाली है। कुछ भक्तों ने स्पेशल आरती बोल रखी है। स्पेशल आरती यानी एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपए वाली। गंगा-तट पर हर छोटे-बड़े मंदिर पर लिखा है — ‘गंगा जी का प्राचीन मंदिर।’ पंडितगण आरती के इंतज़ाम में व्यस्त हैं। पीतल की नीलांजलि में सहस्त्र बातियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
पुर्ज़े खोलकर फिर ठीक करना मशीन काम नहीं है, लोग सीखते भी हैं, सिखाते भी हैं, अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो जो घड़ीसाज़ी का इम्तहान पास कर आया हो। उसे तो देखने दो। साथ ही यह भी समझा दो कि आपको स्वयं घड़ी देखना, साफ़ करना और सुधारना आता है कि नहीं। हमें तो धोखा होता है कि परदादा की घड़ी जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्ज़े सुधारना तब भी दूसरों के हाथ नहीं लगाने देते इत्यादि।
हरगोबिन एक संवदिया था पर उसने अपना काम पूरा नहीं किया। ‘संवदिया’ कहानी के आधार पर लिखिए कि उसने ऐसा क्यों किया।
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिखिए :
मैं तो शहर से या आदमियों से डरकर जंगल इसलिए भागा था कि मेरे सिर पर सींग निकल रहे थे और डर था कि किसी-न-किसी दिन किसी की नज़र मुझ पर ज़रूर पड़ जाएगी।
जंगल में मेरा पहला ही दिन था जब मैंने बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर को बैठे हुए देखा। शेर का मुँह खुला हुआ था। शेर का खुला मुँह देखकर मेरा जो हाल होना था वही हुआ, यानी मैं डर के मारे एक झाड़ी के पीछे छिप गया।
मैंने देखा कि झाड़ी की ओट भी ग़ज़ब की चीज़ है। अगर झाड़ियाँ न हों तो शेर का मुँह-ही-मुँह हो और फिर उससे बच पाना कठिन हो जाए। कुछ देर बाद मैंने देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर एक लाइन से चले आ रहे हैं और शेर के मुँह में घुसे चले जा रहे हैं। शेर बिना हिले-डुले, बिना चबाए, जानवरों को गटकता जा रहा है। यह दृश्य देखकर मैं बेहोश होते-होते बचा।