'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य एक धार्मिक और दार्शनिक काव्य है, जिसमें जीवन, मोक्ष और आत्मसाक्षात्कार की महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है। यह काव्य विशेष रूप से आध्यात्मिक मुक्ति (मोक्ष) के मार्ग पर आधारित है और आत्मा की शुद्धता और भगवान के प्रति समर्पण का संदेश देता है।
'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
आध्यात्मिक मुक्ति का विचार: इस खण्डकाव्य में जीवन के उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसमें मुक्ति (मोक्ष) प्राप्ति के लिए उपासना, साधना और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
धर्म और कर्म का महत्व: 'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य में यह बताया गया है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इसे जीवन के सर्वोत्तम उद्देश्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
समाज सुधार और आत्मशुद्धि: इस काव्य में व्यक्ति को अपनी आत्मा की शुद्धि और समाज में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया है। यह काव्य समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है, जहाँ व्यक्ति अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए कर्म करता है।
सत्कर्म और भक्ति: 'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य में भक्ति और सत्कर्म की महत्ता को उजागर किया गया है। भगवान के प्रति निष्ठा, सेवा और भक्ति को मुक्ति प्राप्ति के मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
साधना और ध्यान: खण्डकाव्य में साधना और ध्यान की विधियों का उल्लेख है, जो आत्मा के शुद्धिकरण और मोक्ष के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन विधियों से मनुष्य अपने भीतर के अज्ञान और मोह को समाप्त कर सकता है।
इस प्रकार, 'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य की विशेषताएँ उसे धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण काव्य बनाती हैं।