Comprehension

निम्नलिखित पठित काव्यांश पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :

किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
चाकर, चपल, नट, चोर, चार, चेटकी ।

पेटको पढ़त, गुन गहत, चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी ॥

ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करी,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी ।

‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनश्याम ही तें,
आगि बढ़ावनीं बड़ी है आगि पेटकी ॥

Question: 1

काव्यांश में तुलसीदास ने वर्णन किया है —

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काव्यांशों में भावार्थ के साथ-साथ संदर्भ को भी समझना आवश्यक होता है ताकि सही उत्तर चयन किया जा सके।
Updated On: Jul 28, 2025
  • अपने समय की सामाजिक विषमता का
  • अपने समय की आर्थिक विषमता का
  • समय से बढ़ती अंधविश्वास प्रवृत्तियों का
  • धार्मिक आडंबरों की बहुलता का
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The Correct Option is B

Solution and Explanation

इस काव्यांश में गोस्वामी तुलसीदास ने समाज के विभिन्न वर्गों — जैसे किसान, बनिक, भिखारी, चोर, चाकर आदि — का उल्लेख करते हुए यह चित्रण किया है कि पेट की भूख के कारण सभी वर्गों को श्रम करना पड़ता है।
काव्य में यह स्पष्ट किया गया है कि आर्थिक आवश्यकता ही सबसे बड़ा कारण है जिससे मनुष्य विवश होकर सब कुछ करता है — वह दिन-रात श्रम करता है, बेटा-बेटी तक बेचने को विवश होता है। इससे तुलसीदास अपने समय की आर्थिक विषमता, गरीबी और जीविका की पीड़ा को दर्शाते हैं।
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Question: 2

पेट की आग को शांत करने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कर्म नहीं किया जा रहा था ?

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उत्तर का चयन करते समय काव्यांश की पंक्तियों का तुलनात्मक विश्लेषण करना चाहिए — जो कर्म उल्लिखित न हो वही सही उत्तर होगा।
Updated On: Jul 28, 2025
  • पर्वतों पर चढ़ना
  • गुणों को गहना
  • व्यापार करना
  • घने जंगलों में घूमना
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The Correct Option is C

Solution and Explanation

काव्यांश में वर्णित पात्र पेट की भूख मिटाने के लिए अनेक प्रकार के कठिन श्रम कर रहे थे — जैसे कि पर्वतों पर चढ़ना, गुणों को ग्रहण करना (गुन गुनना), जंगलों में घूमना आदि।
लेकिन ‘व्यापार करना’ जैसा कर्म कहीं उल्लिखित नहीं है। यह एक अपेक्षाकृत सुविधाजनक कर्म है जो काव्य में वर्णित श्रमिकों की परिस्थितियों से मेल नहीं खाता। अतः यह स्पष्ट होता है कि अन्य सभी कार्य किए जा रहे थे परंतु व्यापार नहीं।
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Question: 3

बड़वाग्नि कहते हैं —

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‘बड़वाग्नि’ जैसी उपमाओं को समझते समय पौराणिक और सांस्कृतिक सन्दर्भों को ध्यान में रखें।
Updated On: Jul 28, 2025
  • समुद्र की आग को
  • जंगल की आग को
  • पेट की आग को
  • सूर्य से प्राप्त आग को
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The Correct Option is A

Solution and Explanation

‘बड़वाग्नि’ एक संस्कृत शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है — ‘समुद्र में स्थित अग्नि’। यह पौराणिक मान्यता पर आधारित है कि समुद्र की गहराइयों में अग्नि विद्यमान होती है जो अंदर ही अंदर जलती रहती है।
काव्य में तुलसीदास ने 'बड़वाग्नि' की उपमा का प्रयोग ‘पेट की आग’ की तीव्रता को दर्शाने के लिए किया है। उन्होंने पेट की भूख को समुद्र की उस अग्नि से भी अधिक तीव्र बताया है।
इससे स्पष्ट होता है कि 'बड़वाग्नि' का वास्तविक अर्थ है — समुद्र की अग्नि।
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Question: 4

काव्यांश के अनुसार ‘पेट की आग’ को किस प्रकार बुझाया जा सकता है ? 
 

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काव्य की अंतिम पंक्तियाँ अक्सर भावार्थ का सार देती हैं, इसलिए उत्तर चयन करते समय उन्हें विशेष रूप से पढ़ें।
Updated On: Jul 28, 2025
  • समुद्र के जल से
  • पसीने के जल से
  • परिश्रम के बल से
  • राम रूपी कृपाजल से
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The Correct Option is D

Solution and Explanation

काव्यांश के अंतिम दो चरणों में तुलसीदास कहते हैं कि ‘तुलसी’ बुझाई एक राम दरसायम ही ते, आगी बड़वाग्नि बड़ी है आगी पेटकी।
इस पंक्ति में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि पेट की अग्नि, जो समुद्र की अग्नि (बड़वाग्नि) से भी अधिक तीव्र है, केवल भगवान राम की कृपा रूपी जल से ही शांत की जा सकती है।
अतः उत्तर (D) — “राम रूपी कृपाजल से” — काव्य के भावार्थ के अनुसार सर्वाधिक उपयुक्त है।
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Question: 5

काव्यांश के आधार पर तुलसीदास के विषय में क्या धारणा बनती है? उचित विकल्प का चयन कीजिए।
(i) राम के प्रति दृढ़ आस्था रखने वाले संत
(ii) समाज को राम भक्ति से जोड़ने वाले साधक 
(iii) सामाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति सजग रचनाकार 
(iv) सामाजिक उत्तरदायित्वों से विमुख वैरागी संत

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काव्य की गहराई में उतरने पर कवि की धार्मिकता और सामाजिक चेतना — दोनों का संतुलन दिखाई देता है।
Updated On: Jul 28, 2025
  • (i) और (ii) दोनों
  • (i) और (iii) दोनों
  • (iii) और (ii) दोनों
  • (ii) और (iv) दोनों
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The Correct Option is B

Solution and Explanation

काव्यांश से स्पष्ट होता है कि तुलसीदास केवल एक संत नहीं, बल्कि एक संवेदनशील सामाजिक चिंतक और रचनाकार भी थे। उन्होंने राम के प्रति गहन भक्ति और विश्वास प्रकट किया है — जो उन्हें एक भक्त संत सिद्ध करता है।
साथ ही, उन्होंने ‘पेट की आग’, श्रमिकों की पीड़ा और गरीबी जैसे यथार्थवादी विषयों को भी उठाया है, जिससे उनकी सामाजिक चेतना और उत्तरदायित्व का बोध होता है।
इसलिए तुलसीदास के व्यक्तित्व की दो प्रमुख धाराएँ सामने आती हैं —
(i) रामभक्ति में अटल आस्था
(iii) सामाजिक यथार्थ के प्रति सजग दृष्टिकोण
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