Question:

के पतिया लग जाए रे मोरा पियामन पास ।।
हिए नहि रहै असबर दुख नै भेजा साजनि मास ।।
एकटिरि बनन पिया हिअइ बंधु रे मोहि हिअइ हुलास ।।
सनेस अहारि दुख दरद बिसरै के पतियामन पास ।।
मोर मन हरष हरि लग लेल रे अपने मन लास ।।
गोकुल तीरि मधुपुर बसै रे कहन अपनपन लेस ।।
 

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मीरा के पदों में सांसारिक प्रेम नहीं बल्कि आत्मा का परमात्मा से मिलन ही मुख्य उद्देश्य होता है — यह पद उसका श्रेष्ठ उदाहरण है।
Updated On: Jul 18, 2025
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Solution and Explanation

संदर्भ:
यह काव्यांश भक्तिकालीन कवयित्री मीराबाई की रचना से लिया गया है।
यह पद मीरा के प्रेम, विरह और आध्यात्मिक समर्पण का जीवंत चित्र प्रस्तुत करता है।
प्रसंग:
इस पद में मीरा अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के विरह में तड़पती हुई उनके पास कोई संदेसा भेजना चाहती हैं।
वह अपने हृदय की पीड़ा को संदेश के माध्यम से प्रकट करना चाहती हैं।
यह पद मीरा के एकनिष्ठ प्रेम, आत्मसमर्पण और भक्ति भावना को दर्शाता है।
व्याख्या:
मीरा कहती हैं — "के पतिया लग जाए रे मोरा पियामन पास" — अर्थात कौन ऐसा दूत है जो मेरे प्रियतम श्रीकृष्ण तक मेरा संदेश पहुँचा सके।
वह कहती हैं कि अब मन में दुख इतना गहरा हो गया है कि कोई साज-सज्जा, गीत-संगीत या त्योहार भी मुझे प्रसन्न नहीं कर सकते।
‘हिए नहि रहै असबर दुख’ – मेरा हृदय असहनीय पीड़ा से भरा है।
मीरा वनवासिनी बन चुकी हैं, उन्होंने सांसारिक संबंधों को त्याग दिया है, और अब केवल श्रीकृष्ण में ही उन्हें सच्चा आनंद मिलता है।
‘एकटिरि बनन पिया हिअइ बंधु’ – श्रीकृष्ण उनके लिए केवल प्रिय नहीं, बल्कि बंधु, जीवन-सहचर, आराध्य सब कुछ हैं।
मीरा यह भी कहती हैं कि केवल उनका संदेश मिलने से ही सारे दुख-दर्द दूर हो सकते हैं।
उनका मन अब हरि में लग चुका है और सांसारिक जीवन के प्रति सभी आसक्तियाँ समाप्त हो गई हैं।
वह कहती हैं कि गोकुल और मधुपुर जहाँ श्रीकृष्ण रहते हैं, वहाँ उन्हें अपनापन नहीं मिलता, क्योंकि अब वे आत्मिक एकत्व की अवस्था में हैं।
यहां मीरा सांसारिक विरह की नहीं, आध्यात्मिक मिलन की कामना कर रही हैं, और यही भाव पद की गहराई को रेखांकित करता है।
निष्कर्ष:
इस पद में मीरा का संपूर्ण समर्पण, एकनिष्ठ प्रेम और आध्यात्मिक भाव उभरकर सामने आता है।
वह श्रीकृष्ण से कोई भौतिक सुख नहीं माँगतीं, केवल आत्मिक एकत्व और कृपा की प्रतीक्षा करती हैं।
यह पद भक्ति साहित्य का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें मानवीय पीड़ा और दिव्य प्रेम एकाकार हो गए हैं।
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