Question:

झोंपड़ी जलाए जाने के बाद भी सूरदास का किसी से प्रतिशोध न लेना, उसके स्वभाव की किस विशेषता को दर्शाता है? सूरदास जैसे चरित्र की वर्तमान समय में क्या प्रासंगिकता है? 
 

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सूरदास का दृष्टिहीन होना प्रतीकात्मक है — वे ही “सबसे ज्यादा देख” सके।
Updated On: Jul 24, 2025
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Solution and Explanation

सूरदास जैसे पात्र किसी रचना में केवल कहानी का साधन नहीं होते, बल्कि वे समाज और मानवता का आदर्श बन जाते हैं। प्रस्तुत प्रसंग में सूरदास एक निर्धन, दृष्टिहीन लेकिन आत्मबल से सम्पन्न व्यक्ति हैं, जिनकी झोंपड़ी जला दी जाती है — यह उनके अस्तित्व पर सीधा प्रहार था। फिर भी, वे प्रतिशोध नहीं लेते।
साहित्यिक दृष्टि से: सूरदास का यह व्यवहार उन्हें सामान्य पात्रों से ऊपर उठा देता है। उनके भीतर न कोई क्रोध है, न हिंसा का भाव — बल्कि करुणा और क्षमा का भाव है। वे जानते हैं कि यदि वह भी क्रोध करेंगे तो और कोई अंतर नहीं बचेगा। वे “क्षमा वीरस्य भूषणम्” के प्रतीक हैं।
वे प्रतिशोध न लेकर एक गहरी नैतिक ऊँचाई पर पहुंचते हैं, जहाँ व्यक्ति दूसरे की भूल को समझता है, दंड नहीं देता।
समकालीन सन्दर्भ: आज जब समाज में कटुता, आक्रोश, असहिष्णुता और प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति बढ़ रही है, सूरदास जैसा शांतचित्त और सहनशील चरित्र एक उदाहरण बन सकता है। वर्तमान में जहां सामाजिक मीडिया पर हर बात का जवाब गाली और नफ़रत से दिया जाता है, वहाँ सूरदास जैसे पात्र हमें आत्मनियंत्रण और करुणा की सीख देते हैं।
प्रभाव: वे हमें यह सिखाते हैं कि कोई भी वास्तविक परिवर्तन बाहरी प्रतिक्रिया से नहीं, बल्कि आंतरिक जागरूकता और आत्मबल से होता है।
एक दृष्टिहीन, परंतु “अंतरदृष्टि” से सम्पन्न व्यक्ति समाज को कैसे आईना दिखा सकता है — यह सूरदास के चरित्र से स्पष्ट होता है।
निष्कर्ष: सूरदास का प्रतिशोध न लेना केवल व्यक्तिगत विशेषता नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक सन्देश है — कि क्षमा में ही सबसे बड़ी विजय छिपी होती है।
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