Comprehension

ईर्ष्या से बचने का उपाय मानसिक अनुशासन है । जो व्यक्ति ईर्ष्यालु स्वभाव का है, उसे फालतू बातों
के बारे में सोचने की आदत छोड़ देनी चाहिए । उसे यह भी पता लगाना चाहिए कि जिस अभाव के कारण वह ईर्ष्यालु बन गया है, उसकी पूर्ति का रचनात्मक तरीका क्या है ? जिस दिन उसके भीतर यह जिज्ञासा जगेगी, उसी दिन से वह ईर्ष्या करना कम कर देगा । 
 

Question: 1

उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

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लेखक का परिचय (जैसे- राष्ट्रकवि) लिखने से उत्तर अधिक प्रभावशाली होता है। सन्दर्भ में पाठ की मूल विधा (जैसे- निबंध) का उल्लेख करना भी अच्छा अभ्यास है।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

Step 1: Understanding the Question:
प्रश्न में दिए गए गद्यांश का सन्दर्भ लिखने के लिए कहा गया है, जिसमें पाठ का नाम और लेखक का नाम बताना होता है।
Step 2: Identifying the Author and Text:
गद्यांश में 'ईर्ष्या', उससे बचने के उपाय के रूप में 'मानसिक अनुशासन' जैसे विषयों पर चर्चा की गई है। यह विषय और लेखन शैली राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' के प्रसिद्ध निबंध 'ईर्ष्या, तू न गई मेरे मन से' का है।
Step 3: Writing the Context (सन्दर्भ):
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के गद्य-खण्ड में संकलित तथा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा लिखित निबंध 'ईर्ष्या, तू न गई मेरे मन से' से अवतरित है। इसमें लेखक ने ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावना के स्वरूप, कारणों और उससे बचने के उपायों पर मनोवैज्ञानिक ढंग से विचार किया है।
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Question: 2

लेखक ईर्ष्या से बचने के लिए किस आदत को छोड़ने को कहता है ?

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गद्यांश आधारित प्रश्नों में अक्सर उत्तर सीधे गद्यांश में ही मिल जाता है। प्रश्न को ध्यान से पढ़ें और गद्यांश में संबंधित पंक्ति को खोजें।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

Step 1: Understanding the Question:
प्रश्न में यह पूछा गया है कि गद्यांश के अनुसार, लेखक ईर्ष्यालु व्यक्ति को ईर्ष्या से बचने के लिए कौन सी आदत छोड़ने की सलाह देता है।
Step 2: Analyzing the Passage:
गद्यांश की दूसरी पंक्ति में स्पष्ट रूप से लिखा है, "...जो व्यक्ति ईर्ष्यालु स्वभाव का है, उसे फालतू बातों के बारे में सोचने की आदत छोड़ देनी चाहिए।" यही लेखक का सीधा उपदेश है।
Step 3: Final Answer:
लेखक ईर्ष्या से बचने के लिए 'फालतू बातों के बारे में सोचने की आदत' को छोड़ने को कहता है। इन फालतू बातों का अर्थ है दूसरों से अपनी तुलना करना, दूसरों की उन्नति देखकर जलना और उन बातों पर व्यर्थ में चिंता करना जो अपने नियंत्रण में नहीं हैं।
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Question: 3

गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
रेखांकित अंश: "जो व्यक्ति ईर्ष्यालु स्वभाव का है, उसे फालतू बातों के बारे में सोचने की आदत छोड़ देनी चाहिए ।"

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व्याख्या करते समय केवल पंक्ति का सरल अनुवाद न करें, बल्कि उसमें निहित गहरे अर्थ को स्पष्ट करें। 'फालतू बातों' जैसे शब्दों का आशय स्पष्ट करना आवश्यक है ताकि परीक्षक को आपकी समझ का पता चल सके।
Updated On: Nov 10, 2025
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Solution and Explanation

Step 1: Understanding the Question:
प्रश्न में दिए गए रेखांकित अंश की व्याख्या करने के लिए कहा गया है, जिसमें लेखक ने ईर्ष्या से बचने का एक उपाय बताया है।
Step 2: Detailed Explanation:
प्रस्तुत पंक्ति में लेखक रामधारी सिंह 'दिनकर' जी ईर्ष्या से बचने का एक व्यावहारिक मनोवैज्ञानिक उपाय बताते हैं।
व्याख्या: लेखक का कहना है कि जिस व्यक्ति के स्वभाव में ईर्ष्या या जलन की भावना है, उसे अपने मन पर नियंत्रण करने का अभ्यास करना चाहिए। इसका सबसे पहला कदम यह है कि वह उन व्यर्थ की बातों के बारे में सोचना बंद कर दे जो ईर्ष्या को जन्म देती हैं।
'फालतू बातों' से लेखक का तात्पर्य दूसरों की संपत्ति, सफलता, सुख-सुविधाओं आदि पर ध्यान केंद्रित करने और लगातार अपनी स्थिति से उनकी तुलना करने से है। यह तुलना ही व्यक्ति के मन में अभाव और हीनता का भाव पैदा करती है, जो ईर्ष्या के रूप में प्रकट होती है। जब व्यक्ति अपने मन को इन व्यर्थ के विचारों में उलझने से रोकेगा, तभी वह अपनी ऊर्जा को सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों में लगा पाएगा। यह आदत छोड़ना ही मानसिक अनुशासन की दिशा में पहला कदम है।
Step 3: Conclusion:
अतः, लेखक के अनुसार ईर्ष्या का मूल कारण व्यर्थ का चिंतन और दूसरों से तुलना है, इसलिए इस मानसिक आदत को त्याग देना ही ईर्ष्या से मुक्ति का प्रथम सोपान है।
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