निम्नलिखित पठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर सर्वाधिक उचित विकल्प चुनकर लिखिए:
ग्वालियर से बंबई की दूरी ने संसार को काफी कुछ बदल दिया है। वसोर्वा में जहाँ आज मेरा घर है, पहले यहाँ दूर तक जंगल था। पेड़ थे, परिंदे थे और दूसरे जानवर थे। अब यहाँ समुंदर के किनारे लंबी-चौड़ी बस्ती बन गई है। इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सकते हैं उन्होंने वहीं-वहाँ डेरा डाल लिया है। इनमें से दो कबूतरों ने मेरे फ्लैट के एक मचान में घोंसला बना लिया है। बच्चे अभी छोटे-छोटे हैं। उनके खिलाने-पिलाने की जिम्मेदारी अभी बड़े कबूतरों की है। वे दिन में कई-कई बार आते-जाते हैं। और क्यों न आएं-जाएं! आखिर उनका भी घर है। लेकिन उनके आने-जाने से हमें परेशानी भी होती है। वे कभी किसी चीज को गिराकर तोड़ देते हैं। कभी मेरी लाइब्रेरी में घुसकर कबीर या मिर्ज़ा गालिब को सताने लगते हैं। इस रोज-रोज की परेशानी से तंग आकर मेरी पत्नी ने उस जगह जाली का अखाड़ा बना दिया, एक जाली लगा दी है, उनके बच्चों को दूसरी जगह कर दिया है। उनके आने की खिड़की को भी बंद किया जाने लगा है। खिड़की के बाहर अब दोनों कबूतर रात-भर खामोश और उदास बैठे रहते हैं।
लेखक जब वसोर्वा रहने आया तो वहाँ स्थिति कैसी थी?
(A) प्राकृतिक वातावरण समृद्ध था।
(B) आधुनिक सुविधाओं से भरपूर वातावरण था।
(C) हवा-पानी की पर्याप्त सुविधा थी।
(D) अड़ोस-पड़ोस बहुत अच्छा था।
लेखक जब वसोर्वा रहने आया था, तब वहाँ की स्थिति प्राकृतिक और शान्तिपूर्ण थी। दूर-दूर तक घने जंगल थे, जिनमें विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, पक्षी और अन्य जीव-जंतु रहते थे। यह क्षेत्र पूरी तरह से प्राकृतिक वातावरण से घिरा हुआ था, जहाँ न तो किसी प्रकार की शहरी आबादी थी और न ही आधुनिक सुविधाओं का प्रभाव था। लेखक ने बताया कि उस समय वसोर्वा का वातावरण इतना समृद्ध था कि वहां के प्राकृतिक संसाधन जीव-जंतुओं के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करते थे।
समय के साथ, इस प्राकृतिक क्षेत्र में मानव बस्ती विकसित हुई और अब वह जगह शहरी इलाका बन गई है, जिससे कई जीव-जंतु अपना आवास खो चुके हैं। इस प्रकार, लेखक ने अपनी यादों के माध्यम से वसोर्वा के पुराने प्राकृतिक सौंदर्य और समृद्धि का चित्रण किया है, जो अब बदल चुका है।
निम्नलिखित कथन तथा कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए। दिए गए विकल्पों में से कोई एक सही विकल्प चुनकर लिखिए।
कथन : लेखक की पत्नी ने कबूतरों के घोंसले का स्थान बदल दिया।
कारण : वे घर के अंदर पुस्तक टेबल-पुस्तकें आदि गंदी कर देते थे।
(A) कथन सही है, किंतु कारण गलत है।
(B) कथन तथा कारण दोनों गलत हैं।
(C) कथन गलत है, किंतु कारण सही है।
(D) कथन सही है और कारण उसकी सही व्याख्या है।
लेखक की पत्नी ने कबूतरों के घोंसले का स्थान बदल दिया क्योंकि कबूतर बार-बार घर के अंदर आकर परेशानी पैदा कर रहे थे। वे कभी किसी चीज को गिराकर या तोड़कर नुकसान पहुंचाते थे, खासकर किताबों और टेबल को। इससे घर की वस्तुएं क्षतिग्रस्त हो रही थीं और घर के सदस्यों को असुविधा हो रही थी। रोज़-रोज़ इस तरह की परेशानी से तंग आकर पत्नी ने जाली लगा दी और कबूतरों के बच्चों को दूसरी जगह भेज दिया। यह कदम घर की सुरक्षा और स्वच्छता बनाए रखने के लिए आवश्यक था। इसलिए, कथन और कारण दोनों सही हैं, और कारण पूरी तरह से कथन की व्याख्या करता है। यह घटना यह भी दर्शाती है कि कभी-कभी स्वाभाविक जीवन और मानव जीवन के बीच टकराव होता है, जिसे समझदारी से सुलझाना पड़ता है।
गद्यांश के आधार पर बढ़ते शहरीकरण का क्या दुष्परिणाम निकला?
(A) पर्यावरण दूषित हो गया।
(B) जीवन प्लेटों में सिमट गया।
(C) जीव-जंतु घर से बेघर हो गए।
(D) समुद्र किनारे घनी आबादी बस गई।
गद्यांश के अनुसार, बढ़ते शहरीकरण का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हुआ कि जीव-जंतु अपने प्राकृतिक आवास से बेघर हो गए। पहले वसोर्वा में घने जंगल और प्राकृतिक वातावरण था, जिसमें अनेक प्रकार के पक्षी, जानवर और पेड़-पौधे थे। लेकिन जैसे-जैसे वहां मानव बस्तियाँ विकसित हुईं, जंगल काटे गए और प्राकृतिक आवास कम होने लगे। इससे कई जीव-जंतु और पक्षी अपना घर छोड़कर अन्य जगहों की ओर भाग गए। जो जीव वहां रुके भी, वे अपनी जीवनशैली में असुविधा महसूस करने लगे। इस प्रक्रिया ने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी प्रभावित किया और जैव विविधता में कमी आई। इसलिए शहरीकरण के कारण जीव-जंतु न केवल घर से बेघर हुए, बल्कि प्राकृतिक संतुलन भी बिगड़ा। यह दुष्परिणाम पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता को दर्शाता है।
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण उपकरण है। यह जीवन के कठिन समय में चुनौतियों का सामना करने का मार्ग प्रशस्त करती है। शिक्षा-प्राप्ति के दौरान प्राप्त किया गया ज्ञान व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है। शिक्षा जीवन में बेहतर संभावनाओं को प्राप्त करने के अवसर के लिए प्रेरित बनाती है। व्यक्ति के जीवन को बढ़ाने के लिए सरकारें कई बहुत से योजनाओं और अवसरों का संचालन करती रही हैं।
शिक्षा मनुष्य को समाज में समानता का अधिकार दिलाने का माध्यम है। जीवन के विकास की ओर बढ़ा देती है। आज के वैज्ञानिक एवं तकनीकी युग में शिक्षा का महत्व और भी बढ़ गया है। यह व्यक्ति को जीवन में बहुत सारी सुविधाएँ प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करती है। शिक्षा का उद्देश्य अब केवल रोजगार प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए भी आवश्यक है।
आज का विद्यार्थी शिक्षा के माध्यम से समाज को जोड़ने की कड़ी बन सकता है। शिक्षा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है, व्यक्ति को समय के साथ चलने और आगे बढ़ने में मदद करती है। यह व्यक्ति को अनुशासन, परिश्रम, धैर्य और शिक्षा जैसे मूल्य सिखाती है। शिक्षा व्यक्ति को समाज के लिए उपयोगी बनाती है और जीवन में अनेक छोटे-बड़े कार्यों में विभिन्न कौशलों को विकसित करती है। यही कारण है कि आज प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करना चाहता है और समाज में दृढ़ता प्राप्त कर सही मार्ग पर खड़ा हो सकता है।
बार-बार आती है मुखाकृति मधुर, याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मधुर खुशी मेरी।
चिंता रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्बंध स्वच्छंद।
कैसे भुला जा सकता है बचपन का अद्भुत आनंद।
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था, छुआ-छूत किसे कहते?
बनी हुई थी वहीं झोपड़ी और सीपियों से नावें।
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती सी आँसू, चुपचाप बहा जाते थे।
वह सुख जो साधारण जीवन छोड़कर महत्वाकांक्षाएँ बड़ी हुईं।
टूट गईं कुछ खो गईं हुई-सी दौड़-धूप घर खड़ी हुईं।
नाटक की तरह एकांकी में चरित्र अधिक नहीं होते। यहाँ प्रायः एक या अधिक चरित्र नहीं होते। चरित्रों में भी केवल नायक की प्रधानता रहती है, अन्य चरित्र उसके व्यक्तित्व का प्रसार करते हैं। यही एकांकी की विशेषता है कि नायक सर्वत्र प्रमुखता पाता है। एकांकी में घटनाएँ भी कम होती हैं, क्योंकि सीमित समय में घटनाओं को स्थान देना पड़ता है। हास्य, व्यंग्य और बिंब का काम अक्सर चरित्रों और नायक के माध्यम से होता है। एकांकी का नायक प्रभावशाली होना चाहिए, ताकि पाठक या दर्शक पर गहरा छाप छोड़ सके।
इसके अलावा, घटनाओं के उद्भव-पतन और संघर्ष की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि नायक ही संपूर्णता में कथा का वाहक होता है। यही कारण है कि नाटकों की तरह इसमें अनेक पात्रों का कोई बड़ा-छोटा संघर्ष नहीं होता। नायक के लिए सर्वगुणसंपन्न होना भी आवश्यक नहीं होता। वह साधारण जीवन जीता हुआ व्यक्ति भी हो सकता है।
इस गद्यांश से यह स्पष्ट होता है कि एकांकी में चरित्रों की संख्या सीमित होती है, नायक अधिक प्रभावशाली होता है और बाहरी संघर्ष बहुत कम दिखाया जाता है।
जवाहरलालनेहरूशास्त्री कञ्चन करणीनामकशिल्पिनः आसीत । मियालगोटेर्यालेयां स्थितः सः आरक्षका: मातृका: हत आसीत: आसीत तद्विषये । सः विज्ञानानन्दसदनं नीत्वा तत्र कार्स्यमं पृष्ट्वा गुरुकुलं अध्यायान्वितं स्म । गार्हस्थ्यं यः सहाय्यं कुर्वीत तस्मै योगः: पुरस्कारः दायते हि सर्वकारणं धार्मिकत्व आसीत ।
कविलासः जवाहरलालनेहरूशास्त्री तेह्रुआं स्फूर्तं परं स्थितः । एष्याणाकारे विद्यायामं सः राजपुरमार्ग स्थितः कञ्चन आराधनं स्मरति स्म । आश्चर्यकरः साधुः इदम्नातरणं एव जवाहरलालनेहरूयं अभिनवावदानम् । अतः सः पुरस्कारतः आख्यापक अध्यम्यः ।
आख्यापकः : आगत्य शान्तिनगरं आरक्षकालं अन्यत्र । शान्तिनगरं: तु अन्यनामं धैर्येण स्थियते न पुरातनं ।
आख्यापकाध्यापकः : नागानिके विद्यालये त्रिविधानां यूनिफार्म परिधानानाम् आज्ञापितवान् । कश्चन छात्रकः शान्तिनगरं : यूनिफार्म परिधानं न आचरत् । एष्यं वस्त्रं यूनिफार्म यत्रात बहिः : स्थातुम् । द्वितीयमिति वहिः : स्थातुम् । तृतीयं वस्त्रं यूनिफार्म यत्रात यत्र बहिः : स्थातुम् ततः तस्मात् अज्ञालिप्ताधिकारि रुष्टगणकानि भूमौ अपतन्त।
“भोः, एषानी नामानि कुतः परिधानं भवता ?” – अनुच्छत्रः आख्यापकाध्यापकः ।
“अहं गण्डकोरीं छत्रकः अस्मि । तत् एव अन्यमानं करणीयं हि उत्कट बन्धुमित्राय निबन्धः । स्तन् धनम् एतत्” इति अवदत् जनोश्चन्द्रशास्त्री ।

Analyze the significant changes in printing technology during 19th century in the world.