निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
हर्बल-ऑर्गेनिक (जैविक) आहार ऐसे आहार होते हैं जो प्राकृतिक रूप से शुद्ध और ताज़े होते हैं और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं। पर्यावरण व्यंजन, पेड़ पदार्थ, फल-सब्जियाँ और मसाले ऋतु के अनुसार हमारे भोजन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। परंपरागत और स्वदेशी भोजन एवं पेड़ पदार्थ पाश्चात्य फास्टफूड एवं रसायन युक्त कोल्ड ड्रिंक्स के शानदार विकल्प हैं। सरकार, व्यापारियों और दुकानदारों को नया कुछ भी नहीं करना है। बस उन्हें पहले से स्थापित भोजनों, दुकानों एवं नैसर्गिक स्थानों, कम्पनी कार्यालयों की कैंटीनों, मॉलों तक इनको पहुँचाना है। परंपरागत खाद्य पदार्थों के साथ आधुनिक खाद्य एवं पेड़ पदार्थों की बिक्री के लिए विशेष व्यवस्था की जानी चाहिए। आर्गेनिक फलों और सब्जियों के ताजा सूप, जूस, शेक, दूध, छाछ, लस्सी, शरबत, ठंडाई, हर्बल चाय, घी, गेहूँ, मक्का या बाजरे की रबड़ी, नींबू की शिकंजी के साथ आर्गेनिक फल भी उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवाए जा सकते हैं। साधारण ढाबों से लेकर पाँच सितारा होटलों तक सलाद, नारियल पानी, जुवारे का जूस, तरबूज का जूस, सत्तू और छाछ जैसे पेड़ पदार्थों को उपलब्ध करवाकर इनको उपभोक्ताओं में लोकप्रिय बनाया जा सकता है। पोषक से हर्बल फ़ूड सेंटर बनाकर यहाँ आर्गेनिक हरी सब्जियाँ, दालों एवं मिलेट्स से निर्मित भोजन भी उपलब्ध करवाया जा सकता है। अंकुरित दालें, अनाज, दही, मक्खन, मक्का की चाट को भी लोकप्रिय बनाया जा सकता है। भारतीय स्वदेशी परंपरागत पेय पदार्थ, व्यंजन एवं मिठाइयाँ, बाजार में लोकप्रिय होने से स्वदेशीकरण, समृद्ध किसान और आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा। इस लक्ष्य को भेदने को ही सरकार ने सबको फ्री की रासायनिक खेती से खराब होने खेतों और मानव स्वास्थ्य को भी बचाया जा सकता है।
उत्तर: कथन सही है और कारण उसकी सही व्याख्या करता है।
स्वदेशी, परंपरागत और जैविक खाद्य एवं पेय पदार्थों की लोकप्रियता से देश की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है क्योंकि इससे स्थानीय किसानों को लाभ मिलता है और उनकी उत्पादकता बढ़ती है। जब लोग विदेशी और रासायनिक उत्पादों की बजाय स्वदेशी और जैविक उत्पादों का उपयोग करेंगे, तो इससे देश की कृषि प्रणाली मजबूत होगी और किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी।
इसके अलावा, स्वदेशीकरण से न केवल आर्थिक सुदृढ़ता आती है, बल्कि यह आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है। आत्मनिर्भरता का मतलब है कि देश अपने आवश्यक संसाधनों और वस्तुओं के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहता, जिससे विदेशी उत्पादों पर निर्भरता कम होती है और राष्ट्रीय आर्थिक विकास होता है।
परंपरागत और जैविक खाद्य पदार्थों की बढ़ती लोकप्रियता से रासायनिक खेती की प्रवृत्ति कम होगी, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा होगी और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कमी आएगी। इस तरह से जैविक कृषि न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी लाभकारी है।
इसलिए कथन और कारण दोनों सही हैं, और कारण कथन की उचित व्याख्या करता है कि स्वदेशीकरण किसानों की समृद्धि और देश की आत्मनिर्भरता का आधार है, जो देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है।
उत्तर: फास्टफूड एवं रसायन युक्त पेय पदार्थों से बचने के लिए स्वदेशी भोजन एवं परंपरागत पेय का उपयोग करना उचित है।
गद्यांश में बताया गया है कि परंपरागत और स्वदेशी भोजन तथा पेय पदार्थ प्राकृतिक, शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। ये पेय पदार्थ और भोजन न केवल शरीर को पोषण देते हैं, बल्कि रासायनिक युक्त फास्टफूड और कोल्ड ड्रिंक्स के उपयोग से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों से भी बचाते हैं।
स्वदेशी भोजन एवं पेय पदार्थ जैसे कि हर्बल चाय, जूस, छाछ, नींबू की शिकंजी आदि प्राकृतिक और जैविक होते हैं, जो न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाते हैं।
इसलिए, फास्टफूड और रसायनयुक्त पेय पदार्थों की जगह स्वदेशी और परंपरागत विकल्पों को अपनाना स्वास्थ्य के लिए हितकारी और सुरक्षित रहता है। यह न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, बल्कि देश के कृषि और आर्थिक विकास में भी सहायक होता है।
परंपरागत भोजन को लोकप्रिय कैसे बनाया जा सकता है ?
i. उपलब्ध करवाकर
ii. प्रचार-प्रसार द्वारा
iii. बिक्री की विशेष व्यवस्था करके
iv. घर-घर मुफ्त अभियान चलाकर विकल्प:
उत्तर: परंपरागत भोजन को लोकप्रिय बनाने के लिए निम्न उपाय प्रभावी हैं:
i. उपलब्ध करवाकर – परंपरागत भोजन और पेय पदार्थों को साधारण ढाबों से लेकर पाँच सितारा होटलों तक उपलब्ध करवाना चाहिए। इससे ये व्यंजन अधिक लोगों तक पहुँचेंगे और लोगों में इनके प्रति रुचि बढ़ेगी।
ii. प्रचार-प्रसार द्वारा – हालांकि प्रचार-प्रसार भी आवश्यक है, लेकिन गद्यांश में मुख्यतः इस पर विशेष जोर नहीं दिया गया है।
iii. बिक्री की विशेष व्यवस्था करके – परंपरागत और जैविक खाद्य पदार्थों की बिक्री के लिए विशेष व्यवस्थाएँ करनी चाहिए, जैसे कि आर्गेनिक फलों और सब्जियों के ताजा सूप, जूस, शेक आदि को बाजार में उपलब्ध करवाना। इससे उपभोक्ताओं तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
iv. घर-घर मुफ्त अभियान चलाकर – यह विकल्प गद्यांश में उल्लेखित नहीं है और व्यावहारिक दृष्टि से यह सभी स्थानों पर संभव नहीं होता।
इस प्रकार, विकल्प i और iii सही हैं क्योंकि ये उपाय परंपरागत भोजन को लोकप्रिय बनाने में अधिक प्रभावी और व्यवहारिक हैं।
उत्तर: आत्मनिर्भर भारत का सपना परंपरागत और स्वदेशी खाद्य पदार्थों, पेय पदार्थों और कृषि उत्पादों की लोकप्रियता और उत्पादन बढ़ाने से पूरा होगा।
गद्यांश में बताया गया है कि जब भारतीय स्वदेशी और जैविक भोजन बाजार में लोकप्रिय होंगे, तो इससे किसान समृद्ध होंगे और देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। स्वदेशी उत्पादों के बढ़ते उपयोग से विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता कम होगी, जिससे आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त होगा।
इसके अलावा, रासायनिक खेती को कम करके जैविक और प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने से न केवल पर्यावरण संरक्षण होगा, बल्कि किसानों के स्वास्थ्य और आय में भी सुधार होगा। यह समग्र विकास और स्वावलंबन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
इसलिए, स्वदेशी भोजन एवं पेय पदार्थों के उत्पादन, वितरण और उपयोग को बढ़ावा देकर ही आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार किया जा सकता है।
उत्तर: हर्बल फूड सेंटर विभिन्न स्थानों पर बहुत लाभदायक होंगे जहाँ लोग स्वास्थ्यवर्धक और प्राकृतिक आहार की तलाश में रहते हैं।
गद्यांश के अनुसार, ये सेंटर साधारण ढाबों से लेकर पाँच सितारा होटलों तक, कम्पनी कार्यालयों की कैंटीनों, मॉलों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर स्थापित किए जा सकते हैं।
हर्बल फूड सेंटर में आर्गेनिक हरी सब्जियाँ, दालें, मिलेट्स से निर्मित भोजन, अंकुरित दालें, दही, मक्खन, और अन्य पारंपरिक पेय एवं व्यंजन उपलब्ध कराए जा सकते हैं, जो उपभोक्ताओं के लिए स्वास्थ्यवर्धक विकल्प प्रदान करेंगे।
इस प्रकार, ये सेंटर लोगों को ताज़ा, शुद्ध और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने में सहायक होंगे, साथ ही पारंपरिक कृषि और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण उपकरण है। यह जीवन के कठिन समय में चुनौतियों का सामना करने का मार्ग प्रशस्त करती है। शिक्षा-प्राप्ति के दौरान प्राप्त किया गया ज्ञान व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है। शिक्षा जीवन में बेहतर संभावनाओं को प्राप्त करने के अवसर के लिए प्रेरित बनाती है। व्यक्ति के जीवन को बढ़ाने के लिए सरकारें कई बहुत से योजनाओं और अवसरों का संचालन करती रही हैं।
शिक्षा मनुष्य को समाज में समानता का अधिकार दिलाने का माध्यम है। जीवन के विकास की ओर बढ़ा देती है। आज के वैज्ञानिक एवं तकनीकी युग में शिक्षा का महत्व और भी बढ़ गया है। यह व्यक्ति को जीवन में बहुत सारी सुविधाएँ प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करती है। शिक्षा का उद्देश्य अब केवल रोजगार प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए भी आवश्यक है।
आज का विद्यार्थी शिक्षा के माध्यम से समाज को जोड़ने की कड़ी बन सकता है। शिक्षा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है, व्यक्ति को समय के साथ चलने और आगे बढ़ने में मदद करती है। यह व्यक्ति को अनुशासन, परिश्रम, धैर्य और शिक्षा जैसे मूल्य सिखाती है। शिक्षा व्यक्ति को समाज के लिए उपयोगी बनाती है और जीवन में अनेक छोटे-बड़े कार्यों में विभिन्न कौशलों को विकसित करती है। यही कारण है कि आज प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करना चाहता है और समाज में दृढ़ता प्राप्त कर सही मार्ग पर खड़ा हो सकता है।
बार-बार आती है मुखाकृति मधुर, याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मधुर खुशी मेरी।
चिंता रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्बंध स्वच्छंद।
कैसे भुला जा सकता है बचपन का अद्भुत आनंद।
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था, छुआ-छूत किसे कहते?
बनी हुई थी वहीं झोपड़ी और सीपियों से नावें।
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती सी आँसू, चुपचाप बहा जाते थे।
वह सुख जो साधारण जीवन छोड़कर महत्वाकांक्षाएँ बड़ी हुईं।
टूट गईं कुछ खो गईं हुई-सी दौड़-धूप घर खड़ी हुईं।
नाटक की तरह एकांकी में चरित्र अधिक नहीं होते। यहाँ प्रायः एक या अधिक चरित्र नहीं होते। चरित्रों में भी केवल नायक की प्रधानता रहती है, अन्य चरित्र उसके व्यक्तित्व का प्रसार करते हैं। यही एकांकी की विशेषता है कि नायक सर्वत्र प्रमुखता पाता है। एकांकी में घटनाएँ भी कम होती हैं, क्योंकि सीमित समय में घटनाओं को स्थान देना पड़ता है। हास्य, व्यंग्य और बिंब का काम अक्सर चरित्रों और नायक के माध्यम से होता है। एकांकी का नायक प्रभावशाली होना चाहिए, ताकि पाठक या दर्शक पर गहरा छाप छोड़ सके।
इसके अलावा, घटनाओं के उद्भव-पतन और संघर्ष की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि नायक ही संपूर्णता में कथा का वाहक होता है। यही कारण है कि नाटकों की तरह इसमें अनेक पात्रों का कोई बड़ा-छोटा संघर्ष नहीं होता। नायक के लिए सर्वगुणसंपन्न होना भी आवश्यक नहीं होता। वह साधारण जीवन जीता हुआ व्यक्ति भी हो सकता है।
इस गद्यांश से यह स्पष्ट होता है कि एकांकी में चरित्रों की संख्या सीमित होती है, नायक अधिक प्रभावशाली होता है और बाहरी संघर्ष बहुत कम दिखाया जाता है।
जवाहरलालनेहरूशास्त्री कञ्चन करणीनामकशिल्पिनः आसीत । मियालगोटेर्यालेयां स्थितः सः आरक्षका: मातृका: हत आसीत: आसीत तद्विषये । सः विज्ञानानन्दसदनं नीत्वा तत्र कार्स्यमं पृष्ट्वा गुरुकुलं अध्यायान्वितं स्म । गार्हस्थ्यं यः सहाय्यं कुर्वीत तस्मै योगः: पुरस्कारः दायते हि सर्वकारणं धार्मिकत्व आसीत ।
कविलासः जवाहरलालनेहरूशास्त्री तेह्रुआं स्फूर्तं परं स्थितः । एष्याणाकारे विद्यायामं सः राजपुरमार्ग स्थितः कञ्चन आराधनं स्मरति स्म । आश्चर्यकरः साधुः इदम्नातरणं एव जवाहरलालनेहरूयं अभिनवावदानम् । अतः सः पुरस्कारतः आख्यापक अध्यम्यः ।
आख्यापकः : आगत्य शान्तिनगरं आरक्षकालं अन्यत्र । शान्तिनगरं: तु अन्यनामं धैर्येण स्थियते न पुरातनं ।
आख्यापकाध्यापकः : नागानिके विद्यालये त्रिविधानां यूनिफार्म परिधानानाम् आज्ञापितवान् । कश्चन छात्रकः शान्तिनगरं : यूनिफार्म परिधानं न आचरत् । एष्यं वस्त्रं यूनिफार्म यत्रात बहिः : स्थातुम् । द्वितीयमिति वहिः : स्थातुम् । तृतीयं वस्त्रं यूनिफार्म यत्रात यत्र बहिः : स्थातुम् ततः तस्मात् अज्ञालिप्ताधिकारि रुष्टगणकानि भूमौ अपतन्त।
“भोः, एषानी नामानि कुतः परिधानं भवता ?” – अनुच्छत्रः आख्यापकाध्यापकः ।
“अहं गण्डकोरीं छत्रकः अस्मि । तत् एव अन्यमानं करणीयं हि उत्कट बन्धुमित्राय निबन्धः । स्तन् धनम् एतत्” इति अवदत् जनोश्चन्द्रशास्त्री ।
आप अदिति / आदित्य हैं। आपकी दादीजी को खेलों में अत्यधिक रुचि है। ओलंपिक खेल-2024 में भारत के प्रदर्शन के बारे में जानकारी देते हुए लगभग 100 शब्दों में पत्र लिखिए।